गुजरात ना नर नारी के वाहन
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ये सारी दुनिया ने जाना।
एक सिक्के के दो पहलू हैं
कितना इनमें ताना बाना।
जैसे अंबर इस धरती पर
उदक आग हैं दोनो लड़ते।
सच और झूठ का है खेला
सुख हंसते हैं दुख तड़पते।
ममता – माया की है मेला
मजहब जाती का है खेला
ऊँच – नीच का ध्यान नहीं है
कहाँ रहे अब गुरु वो चेला।
दुनिया है अमीर गरीब से
रहते सब अपने नसीब से।
बड़े छोटे का क्या है कहना
कभी भाई कभी है बहना।
नरम कठोर ठंढ़ा गरम है
स्त्री पुरुष लिंग भ्रम है मन का
हार जीत का क्या है कहना
नर नारी भूखा है धन का।
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