(ग) कवि यह क्यों कहता है कि मिट्टी के पुतले मानव ने कभी हार नहीं मानी?
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मनुष्य ने कभी भी हार नहीं मानी है
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मानव-शरीर पंचभूतों से बनाया गया है। वह मिट्टी से उगकर मिट्टी में ही मिलनेवाला है। इसलिए कवि ने मानव को मिट्टी का पुतला बताया है। इस मिट्टी के पुतले का सर्वनाश करने की शक्ति सागर में है। फिर भी मानव सागर के सामने हार मानते नहीं। वह साहस संभलकर उसका सामना करता ही रहता है।
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