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खुदीराम बोस ने जज के सामने क्या बयान दिया?
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मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड को मारने की मिली जिम्मेवारी
कोलकाता का चीफ प्रेसिडेंसी मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड क्रांतिकारियों को अपमानित करने और उन्हें दंड देने के लिए बदनाम था। इसके लिए क्रांतिकारियों ने उसकी हत्या का फैसला किया। युगांतर क्रांतिकारी दल के नेता वीरेंद्र कुमार घोष ने घोषणा की कि किंग्सफोर्ड को मुजफ्फरपुर (बिहार) में ही मारा जाएगा। इस काम के लिए खुदीराम बोस तथा प्रफुल्ल चंद को चुना गया। किंग्सफोर्ड को मारने के लिए खुदीराम और प्रफुल्ल चाकी को एक बम और पिस्तौल दी गई थी। 30 अप्रैल 1908 को दोनों यूरोपियन क्लब के बाहर किंग्सफोर्ड का इंतजार करने लगे। रात के 8.30 बजे दोनों ने किंग्सफोर्ड की बग्गी पर हमला कर दिया। हमले में किंग्सफोर्ड बाल-बाल बच गए, लेकिन उनकी बेटी और एक अन्य महिला की मौत हो गई।
फैसला सुनकर मुस्कुराए खुदीराम
8 जून, 1908 को उन्हें अदालत में पेश किया गया और 13 जून, 1908 को शहीद खुदीराम बोस को मौत की सजा सुनाई गई। जब जज ने फैसला पढ़कर सुनाया तो खुदीराम बोस मुस्कुरा उठे। जज को लगा कि खुदीराम सजा को समझ नहीं पाए हैं, इसलिए वे मुस्कुरा रहे हैं। जज ने पूछा कि क्या तुम्हें सजा के बारे में पूरी बात समझ आ गई है। इस पर बोस ने दृढ़ता से जज को कहा कि ‘ये मेरा सौभाग्य है कि जिस देश की मिट्टी का मैंने नमक खाया है, देश के लिए फांसी के तख्ते पर झूल कर आज उस मिट्टी का कर्ज चुकाने का मौका मिला है।'
11 अगस्त 1908 को खुदीराम बोस फांसी पर चढ़े
11 अगस्त, 1908 को सुबह 6 बजे हाथ में गीता लेकर खुदीराम बोस हंसते-हंसते फांसी पर झूल गए। तब उनकी आयु मात्र 18 साल 8 महीने और 8 दिन थी। महान क्रांतिकारी खुदीराम बोस की शहादत के बाद देश में देशभक्ति की लहर उमड़ पड़ी। खुदीराम बोस देश युवाओं के लिए अनुकरणीय हो गए।
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