गुलाब सिंह इस पाठ का वाचन कीजिए और अपने ही शब्दों में इस कहानी को लिखिए।
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भाई-बहन मिलकर झंडे की तैयारी करने लगे। बहन ने अपनी पुरानी ओढ़नी फाड़कर झंडा बना लिया। लाल-हरा रंग भी चढ़ गया। भाई ने उसे अपने खेलने के डंडे से बाँध लिया। इस तरह जुलूस के लिए झंडा तैयार हो गया।
सुभद्राकुमारी चौहान (1904-1948) का जन्म प्रयाग, यू.पी. में हुआ था। बाल्यकाल से साहित्य में इनकी विशेष रुचि थी। प्रथम काव्य रचना 15 वर्ष की आयु में ही की थी। राष्ट्रीय आंदोलन में आप भाग लेती रहीं। आप कई बार जेल गयी थीं। साहित्य और राजनीतिक जीवन में समान रूप से भाग ले कर, जीवन के अंत तक देश की सेवा करती रहीं।
आप की रचनाओं में देश-प्रेम, भारतीय इतिहास तथा संस्कृति की छाप देख सकते हैं। ‘झांसी की रानी’ इनकी प्रसिद्ध कविता है। कविताओं के संकलन ‘त्रिधारा’ व ‘मुकुल’ नाम से प्रकाशित हुए हैं। आप की कहानियों पर हिंदी साहित्य सम्मेलन की ओर से दो बार ‘सेक्सरिया पुरस्कार’ मिला था। आपकी कहानियों के संग्रहों के नाम हैं – ‘बिखरे मोती’ तथा ‘उन्मादिनी’।
पाठ का आशय और महत्वः
‘गुलाब सिंह’ के द्वारा देशभक्ति, त्याग, बलिदान, भाई-बहन का प्रेम, प्रजा की जिम्मेदारियाँ, कर्तव्य आदि का चित्रण किया गया है। इस पाठ में ‘झंडा’ स्वतंत्रता के संकेत के रूप में दिखाया गया है।
‘गुलाब सिंह’ एक देशभक्त की कहानी है। इस पाठ में आज़ादी का महत्व बतलाया गया है। हर एक देश का संकेत झंडा होता है। झंडा पहराना देशभक्ति का प्रतीक है। इसके लिए त्याग और बलिदान भी करना पड़ता है। परिवार के लोगों को भी ऐसे कामों में प्रोत्साहित करना चाहिए। ‘गुलाब सिंह’ कहानी के जरिये सुभद्राकुमारी चौहान यह संदेश सबको देती है।
कहानी का सारांशः
गुलाब सिंह सारे घर का दुलारा था। उसके घर में माता, पिता और प्यारी बहन थे। एक दिन गुलाब सिंह बीमार पड़ा। माँ ने उसका खाना बंद कर दिया। उसका बार-बार कुछ खाने को माँगना छोटी बहन से सहा न गया। उसने प्यार से भाई को सबसे छिपाकर गुड़ और चने खिलाये। भाई खाकर खुश हो गया। धीरे-धीरे रोग उतर गया पर भाई के मन पर बहन के प्रेम की छाप पड़ गई। घर के सब लोगों के साथ गुलाब सिंह का सम्बन्ध अच्छा था।
एक बार झंडे का जुलूस निकलनेवाला था। उत्साही युवक इसके लिए तैयार थे। शहर में आतंक छा गया। बादशाह का हुक्म था कि जुलूस न निकले। गुलाब सिंह को बड़ा गुस्सा आया। उसने अपनी बहन से कहा – “हम जरूर फहराएँगे, अपना झंडा। देखते हैं कौन रोकता है हमें”।
भाई, बहन झंडा बनाने लगे। बहन ने अपनी पुरानी ओढ़नी फाड़कर झंडा बना लिया। लाल-हरा रंग भी चढ़ गया। भाई ने उसे अपने खेलने के डंडे से बाँध कर झंडा तैयार किया। भाई झंडा लेकर चला। बहन भी उसके साथ चलने को तैयार हो गयी। भाई ने उसे रोका। बहन से कहा कि वह अपने भाई को रोली का तिलक लगाकर खुशी से बिदा करें। बहन ने ऐसा ही किया। थाली में एक दिया जलाकर लायी और भाई की आरती उतारने लगी।
बहन ने भाई के माथे पर तिलक लगाया। भाई ने बहन के पैर छुए और विदा ली। झंडे को लहराते हुए ले जाते भाई को देखकर बहन खुश हुई। गुलाब सिंह झंडा लेकर निकल पड़ा। बादशाह के सिपाहियों ने झंडेवाले को रोका। वह न रुका। बादशाह के सिपाहियों ने गोली चला दी। वह गिरा। झंडा उसके हाथ में था। वह खून से लथपथ था। बहन ने भाई को गिरते देखा। वह भाई के पास दौड़कर आयी।
भाई ने झंडा अपनी बहन को दिया। बहन ने झंडा थाम लिया। भाई चला गया। वह बहुत रो रही थी पर झंडा हाथ में उठाए रही। लोगों ने भाई की देह उठाई। आगे आगे झंडा लिए बहन चलने लगी। बादशाह का हुक्म था – ‘जुलूस नहीं निकलेगा।’ लेकिन झंडा निकला और बड़ी शान से निकला। गुलाब सिंह अपनी सुगंध बिखेरकर चला गया।
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