ग्लोबल वार्मिंग का एक परिणाम यह है कि कुछ ग्लेशियरों की बर्फ पिघल रही है। बर्फ के गायब होने के बारह साल बाद, छोटे पौधे, जिन्हें लाइकेन कहा जाता है, चट्टानों पर उगने लगते हैं। प्रत्येक लाइकेन लगभग एक चक्र के आकार में बढ़ता है। इस चक्र के व्यास और लाइकेन की आयु के बीच संबंध सूत्र के साथ समझा जा सकता है:
d=7.0×√(t-12) for t 2 12
जहां d, मिलीमीटर में लाइकेन के व्यास को दर्शाता है, और बर्फ के गायब होने के बाद वर्षों की संख्या को दर्शाता है।
प्रश्न 17: सूत्र का उपयोग करके, बर्फ गायब होने के 16 साल बाद, लाइकेन के व्यास की गणना करें। अपनी गणना दिखाएं। please help me
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Step-by-step explanation:
भूमण्डलीय ऊष्मीकरण का अर्थ पृथ्वी के वायुमण्डल और महासागर के औसत तापमान में 20वीं शताब्दी से हो रही वृद्धि और उसकी अनुमानित निरन्तरता है। पृथ्वी के वायुमण्डल के औसत तापमान में 2005 तक 100 वर्षों के दौरान 0.74 ± 0.18 °C (1.33 ± 0.32 °F) की वृद्धि हुई है।[1] जलवायु परिवर्तन पर बैठे अन्तर-सरकार पैनल ने निष्कर्ष निकाला है कि " 20वीं शताब्दी के मध्य से संसार के औसत तापमान में जो वृद्धि हुई है उसका मुख्य कारण मनुष्य द्वारा निर्मित ग्रीनहाउस गैसें हैं।
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, धरती के वातावरण के तापमान में लगातार हो रही विश्वव्यापी बढ़ोतरी को 'भूमण्डलीय ऊष्मीकरण' कहा जा रहा है। हमारी धरती सूर्य की किरणों से उष्मा प्राप्त करती है। ये किरणें वायुमण्डल से गुजरती हुईं धरती की सतह से टकराती हैं और फिर वहीं से परावर्तित होकर पुन: लौट जाती हैं। धरती का वायुमण्डल कई गैसों से मिलकर बना है जिनमें कुछ ग्रीनहाउस गैसें भी शामिल हैं। इनमें से अधिकांश धरती के ऊपर एक प्रकार से एक प्राकृतिक आवरण बना लेती हैं जो लौटती किरणों के एक हिस्से को रोक लेता है और इस प्रकार धरती के वातावरण को गर्म बनाए रखता है। गौरतलब है कि मनुष्यों, प्राणियों और पौधों के जीवित रहने के लिए कम से कम 16 डिग्री सेल्शियस तापमान आवश्यक होता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्रीनहाउस गैसों में बढ़ोतरी होने पर यह आवरण और भी सघन या मोटा होता जाता है। ऐसे में यह आवरण सूर्य की अधिक किरणों को रोकने लगता है और फिर यहीं से शुरू हो जाते हैं ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभाव।
आईपीसीसी द्वारा दिये गये जलवायु परिवर्तन के मॉडल इंगित करते हैं कि धरातल का औसत ग्लोबल तापमान 21वीं शताब्दी के दौरान और अधिक बढ़ सकता है। सारे संसार के तापमान में होने वाली इस वृद्धि से समुद्र के स्तर में वृद्धि, चरम मौसम (extreme weather) में वृद्धि तथा वर्षा की मात्रा और रचना में महत्वपूर्ण बदलाव आ सकता है। ग्लोबल वार्मिंग के अन्य प्रभावों में कृषि उपज में परिवर्तन, व्यापार मार्गों में संशोधन, ग्लेशियर का पीछे हटना, प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा आदि शामिल हैं।
शब्दावली संपादित करें
"भूमण्डलीय ऊष्मीकरण" से आशय हाल ही के दशकों में हुई ऊष्मीकरण और इसके निरन्तर बने रहने के अनुमान और इसके अप्रत्यक्ष रूप से मानव पर पड़ने वाले प्रभाव से है। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र समझौते की रूपरेखा में "मानव द्वारा किए गए परिवर्तनों के लिए "जलवायु परिवर्तन और अन्य परिवर्तनो के लिए "जलवायु परिवर्तनशीलता" शब्द का इस्तेमाल किया है। यह शब्द " जलवायु परिवर्तन " मानता है कि बढ़ते तापमान ही एकमात्र प्रभाव नहीं हैं यह शब्द " एन्थ्रोपोजेनिक ग्लोबल वॉर्मिंग " कई बार प्रयोग उस समय प्रयोग किया जाता है जब मानव प्रेरित परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित होता है।
Step-by-step explanation:
ग्लोबल वार्मिंग की मार से बेहाल हुआ आइसलैंड, 20 सालों में ग्लेशियरों ने गंवाया 750 वर्ग किलोमीटर का इलाका
ग्लेशियरों की जानकारी रखने वाले लोगों, भूवैज्ञानिकों और भूभौतिकीविदों द्वारा हाल में की गई कैलकुलेशन के मुताबिक, ग्लेशियरों के आकार में हो रही इस कमी का अधिकतर 2000 के बाद शुरू हुआ है.
ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) के चलते पिछले 20 सालों में आइसलैंड (Iceland) के ग्लेशियरों (Glaciers) ने लगभग 750 वर्ग किलोमीटर या कहें अपनी सतह की सात फीसदी जगह गंवा दी है. सोमवार को प्रकाशित हुई एक स्टडी में इसकी जानकारी मिली
आइसलैंडिक वैज्ञानिक पत्रिका जोकुल की स्टडी में कहा गया है कि आइसलैंड में मौजूद ग्लेशियर देश की 10 फीसदी जमीन पर फैले हुए हैं. 2019 में ये 10,400 वर्ग किलोमीटर तक खत्म हो चुके थे. 1890 के बाद से, ग्लेशियरों से ढकी भूमि में लगभग 2200 वर्ग किलोमीटर या 18 फीसदी की कमी आई है.