Hindi, asked by priyampatil1, 4 days ago

गिल्लू और महादेवी वर्मा का सुंदर चित्र बनाते हुए दोनों के बीच के आत्मीय संबंध को 100-
150 शब्दों में लिखिए ।​

Answers

Answered by lalkartikay145
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Answer:

Sorry i cant write

Explanation:

Answered by ayushdas285
1

Answer:

MARK AS BRAINLIEST

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नीहार जीवन के उषाकाल की ही रचना है, जिसमें सत्य कुहाजाल में छिपा रह कर भी मोहक और कुतूहलपूर्ण प्रतीत होती है। 'रश्मि' युवावस्था के प्रारंभिक दिनों की रचना है। जब सत्य की किरणें आत्मा में ज्ञान की ज्वाला जगा देती हैं। 'नीरजा' कवयित्री की प्रौढ़ मानसिक स्थिति की कृति है, जिसमें दिन के उज्जवल प्रकाश में कमलिनी की तरह वह अपने साधना मार्ग पर अपना सौरभ बिखरा देती हैं। 'सांध्यगीत' में जीवन के संध्याकाल की करुणार्द्रता और वैराग्य भावना के साथ-साथ आत्मा की अपने आध्यात्मिक घर को लौट चलने की प्रवृत्ति वर्तमान है। 'दीपशिखा' में रात के शांत, स्निग्ध और शून्य वातावरण में आराध्य के सम्मुख जीवन दीप के जलते रहने की भावना प्रमुख है। इस प्रकार उन्होंने अपने जीवन के अहोरात्र को इन पाँच प्रतीकात्मक शीर्षकों में विभक्त कर अपनी जीवन साधना का मर्म स्पष्ट कर दिया है।

वेदना की इस एकांत साधना के फलस्वरूप महादेवी की कविता में विषयों का वैविध्य बहुत कम है। उनकी कुछ ही कविताएँ ऐसी हैं, जिनमें राष्ट्रीय और सांस्कृतिक उद्बोधन अथवा प्रकृति का स्वतंत्र चित्रण हुआ है। शेष सभी कविताओं में विषयवस्तु और दृष्टिकोण एक ही होने के कारण उनकी काव्यभूमि विस्तृत नहीं हो सकी हैं। इससे उनके काव्य को हानि और लाभ दोनों हुआ है। हानि यह हुई है कि विषय परिवर्तन न होने से उनके समस्त काव्य में एकरसता और भावावृत्ति बहुत अधिक है। लाभ यह हुआ है कि सीमित क्षेत्र के भीतर ही कवयित्री ने अनुभूतियों के अनेकानेक आयामों को अनेक दृष्टिकोणों से देख-परखकर उनके सूक्ष्मातिसूक्ष्म भेद-प्रभेदों को बिंबरूप में सामने रखते हुए चित्रित किया है। इस तरह उनके काव्य में विस्तारगत विशालता और दर्शनगत गुरुत्व भले ही न मिले, पर उनकी भावनाओं की गंभीरता, अनुभूतियों की सूक्ष्मता, बिंबों की स्पष्टता और कल्पना की कमनीयता के फलस्वरूप गांभीर्य और महत्ता अवश्य है। इस तरह उनके काव्य विस्तार का नहीं गहराई का काव्य है।

महादेवी का काव्य वर्णनात्मक और इतिवृत्तात्मक नहीं हैं। आंतरिक सूक्ष्म अनुभूतियों की अभिव्यक्ति उन्होंने सहज भावोच्छवास के रूप में की है। इस कारण उनकी अभिव्यंजना पद्धति में लाक्षणिकता और व्यंजकता का बाहुल्य है। रूपकात्मक बिंबों और प्रतीकों के सहारे उन्होंने जो मोहक चित्र उपस्थित किए हैं, वे उनकी सूक्ष्म दृष्टि और रंगमयी कल्पना की शक्तिमत्ता का परिचय देते हैं। ये चित्र उन्होंने अपने परिपार्श्व, विशेषकर प्राकृतिक परिवेश से लिए हैं पर प्रकृति को उन्होंने आलंबन रूप में बहुत कम ग्रहण किया। प्रकृति उनके काव्य में सदैव उद्दीपन, अलंकार, प्रतीक और संकेत के रूप में ही चित्रित हुई हैं। इसी कारण प्रकृति के अति परिचित और सर्वजनसुलभ दृश्यों या वस्तुओं को ही उन्होंने अपने काव्य का उपादान बनाया हैं। उसके असाधारण और अल्पपरिचित दृश्यों की ओर उनका ध्यान नहीं गया है। फिर भी सीमित प्राकृतिक उपादानों के द्वारा उन्होंने जो पूर्ण या आंशिक बिंब चित्रित किए हैं, उनसे उनकी चित्रविधायिनी कल्पना का पूरा परिचय मिल जाता है। इसी कल्पना के दर्शन उनके उन चित्रों में भी होते हैं, जो उन्होंने शब्दों से नहीं, रंगों और तूलिका के माध्यम से निर्मित किए हैं। उनके ये चित्र 'दीपशिखा' और 'यामा' में कविताओं के साथ प्रकाशित हुए हैं।

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