गिल्लू पाठ का सार लिखिए |
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हिंदी साहित्य की प्रसिद्ध लेखिका महादेवी वर्मा द्वारा लिखित ‘गिल्लू’ रेखाचित्र विधा पर आधारित एक अनुपम रचना है। यह रेखाचित्र उनकी प्रसिद्ध कृति ‘मेरा परिवार’ से संकलित है। प्रस्तुत रचना में गिलहरी जैसे एक अतिसाधारण एवं उपेक्षित प्राणी की चेष्टाओं का सजीव चित्रण करते हुए उसे एक स्मरणीय व्यक्तित्व प्रदान किया गया है। लेखिका लिखती हैं कि पीली जुही के बेल पर लगी कली को देखकर उसे अचानक उस छोटे जीव गिलहरी की याद आ गई, जो कि इस बेल की हरियाली में रहता था और लेखिका को घायल अवस्था में मिला था। उस गिलहरी के बच्चे को लेखिका उठाकर कमरे में ले आई और रूई से उसका रक्त पोंछकर उसके घाव पर पेंसिलीन का मरहम लगाया और रूई की बत्ती से उसे दूध पिलाने का प्रयास किया।
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तीन दिनों के उपचार के बाद वह इतना स्वस्थ हो गया कि उसने अपने दोनों पंजों से लेखिका की उँगली पकड़ ली। तीन-चार महीनों बाद वह एक वयस्क गिलहरी बन गया और लेखिका ने उसे ‘गिल्लू’ नाम दिया। लेखिका ने उसके रहने की व्यवस्था एक डलिया में रूई बिछाकर कर दी। जहाँ गिल्लू दो वर्ष तक रहा। लेखिका का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए वह विभिन्न उपाय करता था। भूख लगने पर वह चिक-चिक करके लेखिका को सूचना देता था। गिल्लू के जीवन के प्रथम वसंत में लेखिका ने उसके लिए खिड़की की जाली का कोना खोल दिया था। लेखिका के बाहर से आने पर वह उसके सिर से पैर तक दौड़ लगाता था। गिल्लू लेखिका को जगह-जगह छिपकर चौंकाता था और लेखिका की थाली में से सफाई के साथ खाना उठाकर खाता था। जब लेखिका को मोटर दुर्घटना में घायल होने के कारण अस्पताल में रहना पड़ा, तब गिल्लू अपना प्रिय पदार्थ काजू भी नहीं खाता था। वह लेखिका की बीमारी में परिचारिका के समान उसका ध्यान रखता था। गिल्लू नए-नए उपाय खोजकर लेखिका के पास ही रहता। सामान्यत: गिलहरियों का जीवनकाल दो वर्ष का होता है। अपने अंत समय में गिल्लू अपने झूले से उतरकर लेखिका के पास आया और लेखिका की उँगली पकड़ ली जैसे कि उसने अपने बचपन में पकड़ी थी, जब वह लेखिका को मिला था। गिल्लू के चिर निद्रा में सोने पर लेखिका ने गिल्लू को उसी सोनजुही की बेल के नीचे समाधि दी, जो उसे बहुत प्रिय थी। लेखिका को उसका, जुही के पीले फूल के रूप में खिलने का विश्वास है, जो उसे संतोष देता है।
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