गुलफाम कहानी का मूल्यांकन कीजिए
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मारे गये गुलफाम' मानवीय संवेदना व प्यार की उत्कृष्ट कहानी है. इसके कथानक पर बनी फिल्म 'तीसरी कसम' हिंदी सिनेमा में मील का पत्थर मानी जाती है.
'मारे गये गुलफाम' उर्फ 'तीसरी कसम'...मानवीय संवेदना व प्यार की उत्कृष्ट कहानी है. कहते हैं कि फणीश्वरनाथ रेणु के 'मैला आँचल' और 'परती परिकथा' जैसे उपन्यासों पर उनकी केवल यही एक कहानी भारी पड़ती है. इस कहानी के कथानक का ही क्रेज था कि सुप्रसिद्ध गीतकार शैलेन्द्र ने 'तीसरी कसम' नाम से एक फिल्म ही बना दी. इस फिल्म में राजकपूर और वहीदा रहमान ने मुख्य भूमिका निभाई थी.
कहानीः मारे गये गुलफाम
-फणीश्वरनाथ रेणु
हिरामन गाड़ीवान की पीठ में गुदगुदी लगती है...
पिछले बीस साल से गाड़ी हाँकता है हिरामन। बैलगाड़ी। सीमा के उस पार, मोरंग राज नेपाल से धान और लकडी ढ़ो चुका है। कंट्रोल के जमाने में चोरबाजारी का माल इस पार से उस पार पहुँचाया है। लेकिन कभी तो ऐसी गुदगुदी नहीं लगी पीठ में!
कंट्रोल का जमाना! हिरामन कभी भूल सकता है उस जमाने को! एक बार चार खेप सीमेंट और कपड़े की गाँठों से भरी गाड़ी, ज़ोगबनी में विराटनगर पहुँचने के बाद हिरामन का कलेजा पोख्ता हो गया था। फारबिसगंज का हर चोर-व्यापारी उसको पक्का गाड़ीवान मानता। उसके बैलों की बड़ाई बड़ी ग़द्दी के बड़े सेठ जी खुद करते, अपनी भाषा में।
गाड़ी पकडी ग़ई पाँचवी बार, सीमा के इस पार तराई में।
महाजन का मुनीम उसी की गाड़ी पर गाँठों के बीच चुक्की-मुक्की लगाकर छिपा हुआ था। दारोगा साहब की डेढ़ हाथ लंबी चोरबत्ती की रोशनी कितनी तेज होती है, हिरामन जानता हैं। एक घंटे के लिए आदमी अंधा हो जाता है, एक छटक भी पड ज़ाए आँखों पर! रोशनी के साथ कडक़ती हुई आवाज - “ऐ-य! गाड़ी रोको! साले, गोली मार देंगे?”