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'लखनवी अंदाज़' शीर्षक की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
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Answer:
'लखनवी अंदाज़' शीर्षक के मूल में व्यंग्य निहित है। इस कहानी में वर्णित स्थान लखनऊ के आसपास का प्रतीत होता है। इसके अलावा नवाब साहब की शान, दिखावा, रईसी का प्रदर्शन, नवाबी ठसक, नज़ाकत आदि सभी लखनऊ के उन नवाबों जैसी है, जिनकी नवाबी कब की छिन चुकी है पर उनके कार्य व्यवहार में अब भी इसकी झलक मिलती है।
Explanation:
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‘लखनवी अंदाज’ पाठ के माध्यम से लेखक ने सामंती वर्ग के उन नवाबों की प्रवृत्ति पर व्यंग्य किया है जो जिनकी नवाबी चली गई है, लेकिन वह अभी भी नवाबी मानसिकता में जी रहे हैं। वर्तमान समय में नवाब ना होने के बावजूद या कोई छोटा-मोटा नवाब होने के बावजूद वे नवाबी शान-शौकत भरी जिंदगी का दिखावा करते हैं, ताकि उनकी नवाबी ठसक बनी रहे। लेखक ने इस कहानी में एक ऐसे ही नवाब साहब की दिखावटी और नवाबी ठसक वाली प्रवृत्ति पर व्यंग किया है। यह नवाब साहब लेखक को एक ट्रेन की यात्रा के दौरान मिले थे।
‘लखनवी अंदाज’ पाठ के नवाब साहब को देखकर एक ऐसे व्यक्ति का चित्र उभर कर सामने आता है. जो पतनशील सामन्त वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है, क्योंकि नवाब साहब की जो भी जीवन शैली थी जो भी उनमें दिखावा करने की प्रवृत्ति थी, वह सामंतवाद का ही प्रतीक थी। उनकी नफासत, नजाकत और दिखावा पसंद आदतें उसी सामंती वर्ग का सूचक थीं, जो अपनी झूठी व दिखावटी शैली के लिए जाना जाता था।
‘लखनवी अंदाज’ पाठ में आज की परजीवी संस्कृति पर व्यंग किया गया है। लेखक ने पाठ के माध्यम से परजीवी संस्कृति उन लोगों के लिए कहा है जो बनावटी जीवनशैली जीने के आदी होते हैं मैं केवल ढोंग और पाखंड करते हैं और वह वास्तव में वह नहीं होते जो दिखाने का प्रयत्न करते हैं।
ऐसे लोग दूसरों को स्वयं से हीन समझते हैं और स्वयं को बहुत उच्च वर्ग का दिखाने का दिखावा करते हैं और अन्य लोगों को स्वयं से हेय दृष्टि का समझते हैं। ऐसे लोग दूसरों के सामने आचरण भी ऐसा ही करते हैं, जिसका वास्तविकता से संबंध नही रखता बल्कि दिखावे और पाखंड से भरा होता है। यह सामंतवादी सोच का परिणाम है।
जिस तरह परजीवी हमेशा दूसरों पर आश्रित रहता है, उसका स्वयं का मौलिक कुछ नही होता। उसी तरह ऐसे लोग भी हमेशा उच्च वर्ग के लोगों की नकल करके उनके जैसा जताने की कोशिश करते हैं, जबकि वास्तविकता में वैसे होते नही हैं।