ग) मानव किस प्रकार सर्वतोन्मुखी उन्नति कर सकता है?
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अपितु सर्वतोमुखी हो जाए तथा दूसरों के भी काम आए यदि व्यक्ति सर्वतो मुखी होकर दूसरों के प्रयोजन हेतु अपने को संलग्न करता है तो उसे घमंड जैसी मनोवृति स्पर्श भी नहीं कर सकती। हमें अपनी संतानों में यह भी संस्कार देने होंगे कि संसार में कोई भी वस्तु व्यर्थ नहीं है। अपने अपने स्थान पर सबका बराबर का महत्व होता है।
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अपितु सर्वतोमुखी हो जाए तथा दूसरों के भी काम आए यदि व्यक्ति सर्वतो मुखी होकर दूसरों के प्रयोजन हेतु अपने को संलग्न करता है तो उसे घमंड जैसी मनोवृति स्पर्श भी नहीं कर सकती।
हमें अपनी संतानों में यह भी संस्कार देने होंगे कि संसार में कोई भी वस्तु व्यर्थ नहीं है।
अपने अपने स्थान पर सबका बराबर का महत्व होता है।
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