Hindi, asked by shruti2770, 4 months ago

गुनी-गुनी सबके कहैं, निगुनी गुनी न होतु ।
सुन्यौ कहूँ तरू आर्क तै, अर्क समान उदोतु भावार्थ स्पष्ट कीजिए​

Answers

Answered by shishir303
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➲ कवि बिहारी लाल की रचना ‘बिहारी सतसई’ के इस दोहे का भावार्थ इस प्रकार है...

गुनी-गुनी सबके कहैं, निगुनी गुनी न होतु ।

सुन्यौ कहूँ तरू आर्क तै, अर्क समान उदोतु।।

भावार्थ ⦂   कवि बिहारी कहते हैं कि सब किसी के गुणी कहकर पुकारने से कोई व्यक्ति गुणी नहीं हो जाता। बहुत से लोग अकवन को अर्क कहते हैं और अर्क सूर्य का भी नाम है।

कहने का तात्पर्य है, कि अकवन को अर्क कहने भर से वह सूर्य जैसा नहीं बन जाता।

उसी तरह गुणहीन व्यक्ति को गुणी- गुणी कहकर पुकारने से वह गुणवान नहीं हो जाता। गुणवान बनने के लिए गुणों को आत्मसात करना पड़ता है।

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