गुन के गाहक सहस नर, बिनु गुन लहै न कोय।
जैसे कागा कोकिला, सबद सुनै सब कोय।।
सबद सुनै सब कोय, कोकिला सबै सुहावन।
दोऊ को इकरंग, काग सब भये अपावन।।
कह 'गिरिधर कविराय' सुनो हो ठाकुर मन के।
बिनु गुन लहे न कोय, सहस नर गाहक गुन के।।
।
बिना विचारे जो करै, सो पाछे पछिताय।
काम बिगारे आपनो, जग में होत हँसाय।।
जग में होत हँसाय, चित्त में चैन न पावै।
खान-पान सनमान, राग रंग मनहिं न भावै।।
कह 'गिरिधर कविराय' दुख कछु टरत न टारे।
खटकत है जिय माँहि, कियो जो बिना विचारे।।
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गुनके गाहक सहस नर, बिन गुन लहै न कोय ।
जैसे कागा-कोकिला, शब्द सुनै सब कोय ।
शब्द सुनै सब कोय, कोकिला सबे सुहावन ।
दोऊ को इक रंग, काग सब भये अपावन ॥
कह गिरिधर कविराय, सुनौ हो ठाकुर मन के ।
बिन गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुनके
chnavya26:
hello tanish
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