गुन के गाहक सहस नर बिन गुन लहै न कोय।जैसे कागा कोकिला, शब्द सुनै सब कोय।।शब्द सुनै सब कोय, कोकिला सबै सुहावन।दोऊ को एक रंग, काग सब भये अपावन।कह 'गिरिधर कविराय', सुनो हो ठाकुर मन के।। बिनु गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुन के ।।
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जब भी विद्युत परिपथ में अभी 12 गया लघु पतन के कारण धारा का मान बढ़ता है तो प्लीज वायर में उसमें उत्पन्न होने के कारण ताप पर जाता है तथा क्यों बिगड़ जाता है टूट जाता है और रुक जाते हैं
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उपर्युक्त पंक्तियाँ कुंडलियां नामक कविता से ली गयी है।
- इस कविता में लकड़ियों के गुणों के बारे में बताया गया है। इन पंकितयों का अर्थ है की जिन लोगों में गन होते है उनकी तरफ सब आकर्षित होते है। परन्तु जिनमे अवगुण होता है उन्हें कोई पसंद नहीं करता और सब उनसे दूर रहना चाहते है।
- सब ही कोई कोयल की आवाज़ सुन्ना पसंद करते है। लेकिन कोई भी कौआ की आवाज़ सुन्ना नहीं पसंद करता। दोनों ही सामान रंग के है परन्तु सब ही कोई काग से भयभीत होते है।
- गिरिधर जी ये ही कहते है की मन की आँखों से देखना चाहिए। हर एक व्यक्ति में कुछ न कुछ गुण होता है बिना गुण के कोई कोई पैदा नहीं होता।
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