गुन
केगाहकसहस नर,बिन गुन लहै न कोय ।
जैसे कागा-कोकिला, शब्द सुनै सब कोय ।।
शब्द सुनै सब कोय, कोकिला सबै सुहावन ।
दोऊ के एकरग, काग सब भये अपावन ।।
गिरिधर कविराय, सुनौ हो ठाकुर मन के।
कह
बिन गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुन के ।।
meaning
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Answer:
प्रस्तुत पंक्ति में गिरिधर कविराय ने मनुष्य के आंतरिक गुणों की चर्चा की है। गुणी व्यक्ति को हजारों लोग स्वीकार करने को तैयार रहते हैं लेकिन बिना गुणों के समाज में उसकी कोई मह्त्ता नहीं। इसलिए व्यक्ति को अच्छे गुणों को अपनाना चाहिए।
Answer:
गुन के गाहक सहस, नर बिन गुन लहै न कोय।
जैसे कागा कोकिला, शब्द सुनै सब कोय॥
शब्द सुनै सब कोय, कोकिला सबै सुहावन।
दोऊ के एक रंग, काग सब भये अपावन॥
कह गिरिधर कविराय, सुनो हो ठाकुर मन के।
बिनु गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुन के॥
उपर्युक्त पंक्ति का आशय यह है कि जिस तरह नाव में पानी भरने से नाव डूबने का दर अर्थात ख़तरा बढ़ जाता है। इस प्रकार की परिस्थिति में हम दोनों हाथ का उपयोग करके नाव का पानी बाहर की और फेंकने लगते है। ठीक उसी प्रकार घर में धन ज्यादा हो जाने पर हमें दोनों हाथों से दान करना चाहिए।
- प्रस्तुत कविता में कवि ने आंतरिक गुणों की व्याख्या की है जो मनुष्य में उपस्थित है। बिना गुणों के व्यक्ति की कोई प्रसंशा या क़द्र नहीं होती । गुणी लोग सबका मन जीत लेते है और सबके चहेते बन जाते है ।
- इन पंक्तियों का मतलब है कि बिना गुणों के किसी का कोई मूल्य नहीं है , कोयल व कागा दोनों गाते है तो कोकिला का गीत सभी को भाता है , लेकिन कौआ ने गाया तो लोग पसन्द नहीं करते अर्थात उसकागण किसी को नहीं भाता है।
दान:
दान के मूल्य मेल खाते हैं, सार्वजनिक लाभ और वे कुछ शर्तों पर स्थापित किए गए हैं। दान का एकमात्र उद्देश्य दूसरों की मदद करना है और कुछ नहीं। दान का दूसरा उद्देश्य उन दान से बचना है जो धर्मार्थ नहीं हैं और उन लोगों को रोकना है जो एक दान से लाभ कमाने की कोशिश कर रहे हैं।
गैर-लाभकारी दान से निपटने वाले संगठनों को कोई लाभ कमाने की अनुमति नहीं है। उनके द्वारा उठाया गया एक-एक पैसा अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए दान किया जाना चाहिए। किसी चैरिटी के कोई शेयरधारक या मालिक नहीं हैं जो चैरिटी दान से लाभ उठा सकते हैं।
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