(ग) निर्मल मन जन सो मोहि पावा। मोहि कपट छल छिद्र न भावा॥ भेद लेन पठवा दससीसा। तदपि न कछु भय हानि कपीसा॥ जग में सखा निसाचर जेते। लक्ष्मण हनहिं निमिसमहिं तेते॥ जो सभीत आवा सरनाई। रखिहौं ताहि प्राण की नाई
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