गानेवाली घिडिया" पाठ का आगरा
अपने राब्दी मे लिखिरा ।
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विलुप्त होती जा रही गौरैया (दुष्यंत यादव) आप ऊपर जो चित्र देख रहे हैं,वह गौरैया का है. एक नन्हीं सी, भूरे रंग की, छोटे-छोटे पंखों वाली, पीली सी चोंच लिए, 14से 16 से.मी लंबी इस चिडिया को आप अपने घर के आसपास मंडराते देख सकते हैं. इसे हर तरह की जलवायु पसंद है. गाँवों- कस्बों-शहरों और खेतों के आसपास यह बहुतायत से पायी जाती है. नर गौरैया के सिए का ऊपरी भाग, नीचे का भाग तथा गालों का रंग भूरा होता है. गला.चोंच और आँखों पर काला रंग होता है. जबकि मादा चिडिया के सिर और गले पर भूरा रंग नहीं होता. लोग इन्हें चिडा-चिडिया भी कहते हैं.
यह निहायत ही घरेलू किस्म का पक्षी है, जो यूरोप और एशिया में सामान्य रुप से पाया जाता है. मनुष्य जहाँ-जहाँ भी गया, इस पक्षी ने उसका अनुसरण किया. उन्हीं के घरों के छप्परों में घोंसला बनाया और रहने लगा. इस तरह यह अफ़्रीका,यूरोप, आस्ट्रेलिया और एशिया में सामान्यतया पाया जाने लगा.
इस पक्षी की मुख्य छः प्रजातियां पायी जाती है. हाउस स्पेरो माने घरेलू चिडिया, स्पेनिश स्पेरो, सिंड स्पेरो, रसेट स्पेरो, डॆड सी स्पेरो और ट्री स्पेरो.
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