गुण गुणज्ञेषु गुणा भवन्ति ।
ते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषा ॥
सुस्वादुताया: प्रभवन्ति नद्यः ।
समुद्रमासाद्य भवन्त्यपेयाः ॥
साहित्य सङ्गीतकलाविहीनः
साक्षात्पशु: पुच्छविषाणहीनः ।
तृणं न खादन्नपि जीवमानः
तद् भागधेयं परमं पशूनाम्
ka hindi arth
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संस्कृत भाषा का बड़ा ही सुन्दर श्लोक है :
संस्कृत भाषा का बड़ा ही सुन्दर श्लोक है :गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्ति
संस्कृत भाषा का बड़ा ही सुन्दर श्लोक है :गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्तिते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः ।
संस्कृत भाषा का बड़ा ही सुन्दर श्लोक है :गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्तिते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः ।सुस्वदुतोयाः प्रवहन्ति नद्यः
संस्कृत भाषा का बड़ा ही सुन्दर श्लोक है :गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्तिते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः ।सुस्वदुतोयाः प्रवहन्ति नद्यःसमुद्रमासाद्य भवन्त्यपेयाः ।।
संस्कृत भाषा का बड़ा ही सुन्दर श्लोक है :गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्तिते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः ।सुस्वदुतोयाः प्रवहन्ति नद्यःसमुद्रमासाद्य भवन्त्यपेयाः ।।इसका अर्थ है कि अच्छे व्यक्ति उस नदी के समान हैं, जो नदी पर्वतों से निकलती है, जिसका जल स्वादिष्ट होता है, जिसे सभी पसन्द करते हैं; परन्तु जब वही नदी समुद्र में जाकर मिल जाती है, तो उसका जल खारा हो जाता है, फ़िर उसके जल को कोई पसन्द नहीं करता।
संस्कृत भाषा का बड़ा ही सुन्दर श्लोक है :गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्तिते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः ।सुस्वदुतोयाः प्रवहन्ति नद्यःसमुद्रमासाद्य भवन्त्यपेयाः ।।इसका अर्थ है कि अच्छे व्यक्ति उस नदी के समान हैं, जो नदी पर्वतों से निकलती है, जिसका जल स्वादिष्ट होता है, जिसे सभी पसन्द करते हैं; परन्तु जब वही नदी समुद्र में जाकर मिल जाती है, तो उसका जल खारा हो जाता है, फ़िर उसके जल को कोई पसन्द नहीं करता।इसका भावार्थ है कि हमारे अच्छे गुण तब तक अच्छे रहते हैं, जब तक हम अच्छे लोगों की संगति में रहते हैं।
संस्कृत भाषा का बड़ा ही सुन्दर श्लोक है :गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्तिते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः ।सुस्वदुतोयाः प्रवहन्ति नद्यःसमुद्रमासाद्य भवन्त्यपेयाः ।।इसका अर्थ है कि अच्छे व्यक्ति उस नदी के समान हैं, जो नदी पर्वतों से निकलती है, जिसका जल स्वादिष्ट होता है, जिसे सभी पसन्द करते हैं; परन्तु जब वही नदी समुद्र में जाकर मिल जाती है, तो उसका जल खारा हो जाता है, फ़िर उसके जल को कोई पसन्द नहीं करता।इसका भावार्थ है कि हमारे अच्छे गुण तब तक अच्छे रहते हैं, जब तक हम अच्छे लोगों की संगति में रहते हैं।जैसे ही हम बुरे लोगों की संगति में चले जाते हैं, वैसे ही हमारे सद्गुण भी दुर्गुण में बदल जाते हैं।
संस्कृत भाषा का बड़ा ही सुन्दर श्लोक है :गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्तिते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः ।सुस्वदुतोयाः प्रवहन्ति नद्यःसमुद्रमासाद्य भवन्त्यपेयाः ।।इसका अर्थ है कि अच्छे व्यक्ति उस नदी के समान हैं, जो नदी पर्वतों से निकलती है, जिसका जल स्वादिष्ट होता है, जिसे सभी पसन्द करते हैं; परन्तु जब वही नदी समुद्र में जाकर मिल जाती है, तो उसका जल खारा हो जाता है, फ़िर उसके जल को कोई पसन्द नहीं करता।इसका भावार्थ है कि हमारे अच्छे गुण तब तक अच्छे रहते हैं, जब तक हम अच्छे लोगों की संगति में रहते हैं।जैसे ही हम बुरे लोगों की संगति में चले जाते हैं, वैसे ही हमारे सद्गुण भी दुर्गुण में बदल जाते हैं।फ़िर हमें भी कोई पसन्द नहीं करता है।
संस्कृत भाषा का बड़ा ही सुन्दर श्लोक है :गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्तिते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः ।सुस्वदुतोयाः प्रवहन्ति नद्यःसमुद्रमासाद्य भवन्त्यपेयाः ।।इसका अर्थ है कि अच्छे व्यक्ति उस नदी के समान हैं, जो नदी पर्वतों से निकलती है, जिसका जल स्वादिष्ट होता है, जिसे सभी पसन्द करते हैं; परन्तु जब वही नदी समुद्र में जाकर मिल जाती है, तो उसका जल खारा हो जाता है, फ़िर उसके जल को कोई पसन्द नहीं करता।इसका भावार्थ है कि हमारे अच्छे गुण तब तक अच्छे रहते हैं, जब तक हम अच्छे लोगों की संगति में रहते हैं।जैसे ही हम बुरे लोगों की संगति में चले जाते हैं, वैसे ही हमारे सद्गुण भी दुर्गुण में बदल जाते हैं।फ़िर हमें भी कोई पसन्द नहीं करता है।इसीलिए हमारा प्रयास होना चाहिए कि हम अच्छे लोगों की संगति में रहें, ताकि हमारे गुण अच्छे बने रहें, ताकि हमारी पहचान अच्छी बनी रहे।
संस्कृत भाषा का बड़ा ही सुन्दर श्लोक है :गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्तिते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः ।सुस्वदुतोयाः प्रवहन्ति नद्यःसमुद्रमासाद्य भवन्त्यपेयाः ।।इसका अर्थ है कि अच्छे व्यक्ति उस नदी के समान हैं, जो नदी पर्वतों से निकलती है, जिसका जल स्वादिष्ट होता है, जिसे सभी पसन्द करते हैं; परन्तु जब वही नदी समुद्र में जाकर मिल जाती है, तो उसका जल खारा हो जाता है, फ़िर उसके जल को कोई पसन्द नहीं करता।इसका भावार्थ है कि हमारे अच्छे गुण तब तक अच्छे रहते हैं, जब तक हम अच्छे लोगों की संगति में रहते हैं।जैसे ही हम बुरे लोगों की संगति में चले जाते हैं, वैसे ही हमारे सद्गुण भी दुर्गुण में बदल जाते हैं।फ़िर हमें भी कोई पसन्द नहीं करता है।इसीलिए हमारा प्रयास होना चाहिए कि हम अच्छे लोगों की संगति में रहें, ताकि हमारे गुण अच्छे बने रहें, ताकि हमारी पहचान अच्छी बनी रहे।(उपरोक्त श्लोक NCERT पाठ्यक्रम के अन्तर्गत कक्षा 8 की संस्कृत की पुस्तक “रुचिरा भाग 3” में शामिल किया गया है। आशा है आप सभी इस श्लोक के भावार्थ को समझते हुए इसे अपने जीवन में लागू करेंगे और स्वयं के साथ साथ दूसरों को भी अच्छा बनाने का प्रयास करेंगे।)