(ग) पंखि उड़ाणी गगन कुँ, प्यंड रह्या परदेस। पाणी पीया चंच बिन, भूलि गया यहु देस।।
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sorry I can't understand hindi
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pls mark as brainlist :(
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प्रस्तुत साखी में कबीर साहेब ने आत्मा के विषय में कहा है की वह शुद्ध होकर गगन, पूर्व परमात्मा की तरफ बढ़ चली है और यह देह यहीं पर रह गया है। आत्मा ऊर्ध्वगमन हो गई है। शून्य में पहुँच कर आत्मा ने बिना किसी इन्द्रियों की सहायता के अमृत का पान किया है। इस अमृत का पान करके वह सांसारिकता को भूल गया है। आत्मा इस जगत को भुला चुकी है और अमृत पान को बगैर किसी बाह्य इन्द्रियों की सहायता के पान कर रही है। भाव है की उसे अब सांसारिक मायाजनित कार्यों से अलगाव हो गया है और आत्मा अमृत का पान कर रही है. इस साखी में अन्योक्ति और विभावना अलंकार की व्यंजना हुई है.
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