गोपान' उपन्यास भारतीय किसानकी
समस्याजों का जीवंत चित्रसमसाईयो
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हम प्रेमचंद के रूप में आप एक सुपरिचित कथाकार का अध्ययन करने जा रहे है। हिंदी में जब भी उपन्यास लेखकों की चर्चा की जाती है, तब प्रेमचंद का नाम सबसे पहले लिया जाता है। एक तो . इसलिए कि प्रेमचंद हिंदी के पहले गंभीर उपन्यास लेखक हैं और दूसरे उनके उपन्यास आज भी श्रेष्ठ एवं प्रासंगिक बने हुए है। इस इकाई के अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाएगा कि ‘गोदान’ (1936ई.) की चर्चा किए बिना हिंदी उपन्यास साहित्य पर सार्थक चर्चा नहीं हो सकती। इस इकाई में ‘किसान-जीवन’ को ध्यान में रखते हुए हम ‘गोदान’ की विषय वस्तु का विश्लेषण करेंगे।
इसे पढ़ने के बाद आप –
भारतीय किसानों का आर्थिक-सामाजिक शोषण करने वाली दमनकारी ज़मींदारी व्यवस्था से परिचित हो सकेंगे,
जातिव्यवस्था और शोषण प्रक्रिया के अंतः संबंधों को जान सकेंगे,
‘गोदान’ में गाय के महत्व और धर्म के दबाव को झेलते किसान की मनःस्थिति को समझ सकेंगे,
होरी का शोषण व्यवस्था और शोषकों के विरोध में विद्रोह न करने के कारणों को भी जान सकेंगे,
पूँजीवाद के आगमन के कारण बदलते आर्थिक-सामाजिक संबंधों का आप विवेचन कर सकेंगे।
गोदान का अध्ययन-विश्लेषण इन्हीं प्रश्नों और बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए करने का हमने प्रयास किया है, इस पाठ का ध्यानपूर्वक अध्ययन करे।
जून, 1903 में प्रेमचंद ने “ऑलिवर क्रामवेल” की जीवनी पर एक लेख लिखा। इसमें : उन्होंने एक रचनात्मक निरीक्षण करते हुए लिखा है – “ऐसा बहुत कम संयोग हुआ है . कि एक शांति-प्रेमी किसान के रोज़ाना हालात विस्तार के साथ लिखें हुए, मिल सकते हों या उनमें किस्सों की-सी दिलचस्पी और अजब-अनोखी बातें पायी जाती हों।” (विविध प्रसंग, भाग-1, पृ.37 सं.अमृतराय, हंस प्रकाशन, इलाहाबाद, 1962) यह प्रेमचंद का आरंभिक लेख है। इस लेख में प्रेमचंद की रचनात्मक चुनौती और भीतरी लालसा का पता चलता है कि आखिर किसान का दैनिक जीवन किस्से-कहानियों का विषय क्यों नहीं हो सकता? प्रेमचंद ने इस संभावना की तलाश की। किसान-जीवन का बारीकी से मनन किया। उसके जीवन के करुण-मनोहर पक्षों को देखा-परखा। इस क्रम में उन्होंने सर्वप्रथम “पंच परमेश्वरः’ (1915) कहानी लिखी। बाद में “सवा सेर गेहूं”, “दो बैलों . की कथा”, “बलिदान”, “मुक्तिमार्ग”, “पूस की रात” आदि अनेक कहानियाँ तथा “प्रेमाश्रम”, “कर्मभूमि” आदि उपन्यास लिखे। इतने सारे लेखन के बावजूद प्रेमचंद की रचनात्मकता संतुष्ट नहीं हुई। उनको लगता रहा कि अभी “शांति-प्रेमी किसान के रोज़ाना हालात विस्तार के साथ” चित्रित नहीं हो पाए हैं। अतः वे किसान जीवन के . मनन एवं किसान पात्रों की तलाश में लगे रहे। अंततः “गोदान” में होरी-धनिया को उपस्थित कर उन्होंने अपने उस स्वप्न को साकार किया, जिसकी अनकही चुनौती 1903 ई. से उनके मन-मस्तिष्क में सजीव थी। निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि “गोदान” प्रेमचंद की आकस्मिक रचना नहीं है, वरन् उनके जीवन-भर के सर्जनात्मक प्रयासों का निष्कर्ष देने वाली रचना है।