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"पूरब-पश्चिम से आते हैं
नंगे-बूचे नरकंकाल
सिंहासन पर बैठा, उनके
तमगे कौन लगाता है।"
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पूरब-पश्चिम से आते हैं,
नंगे-बूचे नरकंकाल,
सिंहासन पर बैठा, उनके
तमगे कौन लगाता है।
व्याख्या ➲ कवि कहता है कि राष्ट्रीय त्योहार के समय सभी दिशाओं से जो जनता आ रही है, वह नंगे पांव है, वह गरीब है और केवल नर कंकाल का रूप दिख रही है। उसकी मेहनत से कमाई गाढ़ी कमाई का बहुत बड़ा हिस्सा सिंहासन पर बैठा जनप्रतिनिधि हजम कर लेता है। यह गरीब जनता का ही पैसा है जिसके पैसे से वह मेडल पहनता है, मंच पर फूलों की माला पहनता है और तमाम सुख सुख-सुविधाओं का भोग करता है। जनता तो गरीबी की मार से त्रस्त रहती है।
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