(ग) प्रभु को बादल ओर स्वयं को मोर बताने में कवि का कौन-सा भाव निहित है।
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Answer:
प्रभु जी बादल के समान हैं और भक्त मोर के समान। मोर आकाश में बादलों को देखकर नाचता है, उसी प्रकार भगवान का नाम सुनते ही भक्त पागल हो जाता है। जैसे चकोर पक्षी चंद्रमा को देखता है, वैसे ही रैदास भी भगवान को देखते हैं। विशेष—ईश्वर के प्रति दासता प्रकट की होl
Explanation:
जब भक्त पर भक्ति का रंग पूरी तरह चढ़ जाता है। एक बार जब भक्त पर भगवान की भक्ति का रंग चढ़ जाता है, तो वह फिर कभी नहीं छोड़ता। कवि कहता है कि भगवान चंदन हैं तो भक्त जल है। जैसे चंदन की सुगंध पानी की एक-एक बूंद में व्याप्त हो जाती है, वैसे ही भगवान की भक्ति भक्त के हर अंग में व्याप्त हो जाती है। यदि भगवान बादल हैं तो भक्त मोर के समान होता है जो बादल को देखते ही नाचने लगता है। यदि भगवान चंद्रमा हैं, तो भक्त एक चौकोर पक्षी की तरह होता है जो चंद्रमा को देखता है। यदि भगवान दीपक हैं, तो भक्त उसकी बत्ती के समान है जो दिन-रात प्रकाश देती है। यदि भगवान मोती हैं, तो भक्त उस धागे के समान होता है जिसमें मोतियों को पिरोया जाता है। इसका प्रभाव ऐसा होता है मानो सोने में शीशा लगा दिया गया हो, यानी इसकी सुंदरता और भी निखर उठती है।
भगवान की महिमा का गुणगान। भगवान गरीबों के उद्धारकर्ता हैं, उनके माथे पर छाता सुशोभित है। ईश्वर के पास इतनी शक्ति है कि वह कुछ भी कर सकता है और उसके बिना कुछ भी संभव नहीं है। भगवान का स्पर्श अस्पृश्य व्यक्ति का कल्याण भी करता है। परमेश्वर अपने प्रताप से एक नीच व्यक्ति को ऊँचा बना सकता है। जिस भगवान ने नामदेव, कबीर, त्रिलोचन, साधना और सैनु जैसे संतों को बचाया था, वह दूसरों को भी बचाएगा।
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उत्तर:
कवि का स्वयं को मोर और ईश्वर को बादल बताने में दास्य भाव निहित है। ईश्वर के प्रति स्वयं को पूर्ण रूप से समर्पित किया जा रहा है।
व्याख्या :
- कवि रैदास भगवान को बादल और स्वयं को मोर के रूप में प्रस्तुत करते हैं। और कहते हैं कि जिस प्रकार मोर बादलों को देखकर वर्षा होने की आस में नाचने लगता है, उसी प्रकार वह ईश्वर को देखकर उसकी उपासना करने लगते हैं। कि जैसे बादल मोर के नृत्य से प्रसन्न होकर उस पर वर्षा का जल बरसाता है उसी प्रकार भगवान भी रैदास की दास्य भाव की भक्ति भावना से प्रसन्न होकर उसके ऊपर अपना आशीर्वाद बसाएंगे।
- रैदास भक्ति काल के संत कवियों में प्रमुख संत कवि थे। रैदास ने भगवान की दास्य भावना पर आधारित भक्ति की है। संत कवि अपनी कविताओं के माध्यम से ईश्वर की अर्चना वंदना करते थे। वे ईश्वर को अपना सर्वस्व मानकर उनके चरणों में अपना संपूर्ण जीवन अर्पित कर देने में विश्वास रखते थे।
- दास्य भाव की भक्ति नवधा भक्ति का ही एक रूप है ।
इस प्रकार हम देखते हैं कि स्वयं को ईश्वर का अनुचर या उसके परोपकार पर अपने जीवन का निर्वाह मान लेना दास्य भाव की भक्ति में आता है जैसा कि रैदास द्वारा लिखित पंक्तियों में भी दिखाई देता है।
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