गुप्त जी के काव्य में भाव पक्ष एवं कला पक्ष का सुंदर सा मामले हुआ है स्पष्ट कीजिए
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) कला-पक्ष- (1) भाषा और शैली- गुप्तजी की भाषा शुद्ध परिष्कृत खड़ीबोली है जिसका विकास धीरे-धीरे हुआ है। इनकी प्रारंभिक काव्य रचनाओं में गद्दे की भांति छू सकता है, किंतु बात की रचनाओं में सरसता और मधुरता अपने आप आ गयी है। इनकी भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। शब्द-चयन में भी ये काफी कुशल हैं ।
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