"गुप्त काल प्राचीन भारतीय संस्कृति का स्वर्णयुग था।" टिप्पणी कीजिए। in(600 words)
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गुप्त काल प्राचीन भारतीय संस्कृति का स्वर्णयुग था।
➠ गुप्त वंश सबसे बड़ा वंश है और गुप्त सम्राट हमारे देश का सबसे पुराना और प्राचीन सम्राट है।
➠ यह सबसे बड़ा वंश है और महाद्वीप पर ही नहीं हमारे देश भारत पर भी राज करता है।
➠ इस गुप्त सम्राट और वंश का आरंभ और निर्माण तीसरी शताब्दी के मध्य से सीई में हुआ।
➠ अंत और इस राजवंश का अंतिम शासन 543 CE के अंत तक चला।
क्या आप जानते हैं?
➠ गुप्त गुप्त वंश सबसे बड़ा वंश है और न केवल हमारा एशिया है।
➠ गुप्ता सम्राट ने रूस के पास अन्य महाद्वीपों की काउंटियों पर कब्जा करने की भी कोशिश की।
➠ इसके अलावा हमारे भारत के उपमहाद्वीप पूरी तरह से गुप्त वंश के महान सम्राटों द्वारा शासित और शासित हैं।
➠ इस राजवंश का सबसे प्रसिद्ध सम्राट "चंद्र गुप्त मौर्य" है।
क्या आप जानते हैं?
➠ सबसे लोकप्रिय और महान राजा "अशोक" में से एक।
➠ दोस्तों और मौर्य वंश के बीच सबसे बड़ा संबंध वे एक के हैं और बाद में मौर्य वंश में विभाजित किया गया था।
➠ गुप्त वंश को निम्न कारणों से स्वर्ण युग के रूप में जाना जाता है:
➠ 4 वीं - 6 वीं ईस्वी शताब्दी की समय अवधि को आमतौर पर भारत के स्वर्ण युग के रूप में जाना जाता है।
➠ इस समय अवधि में लोगों द्वारा योगदान के एक हिस्से के रूप में कई प्रकार की उपलब्धियां हासिल की गई हैं।
➠ लोगों का योगदान महान विषयों के बारे में था और यह भारत के विकास का नेतृत्व करता था।
➠ निम्नलिखित विषयों मूर्तिकला, ज्योतिष (अंतरिक्ष और वैज्ञानिक संकेतन का एक बड़ा नेतृत्व) के एक हिस्से के रूप में विकसित अतीत में आधुनिक तरीके से नहीं।
➠ दर्द सबसे महत्वपूर्ण अभ्यास में से एक था और योगदान गणितीय गणना और गणना के समान गणना के क्षेत्र में योगदान थे।
➠ गणित और गणितीय का उपयोग करते हुए उन्होंने स्क्रिप्ट बनाई और कुछ नोटेशन का उपयोग करके खोज की।
➠ कुछ खगोलीय सूचनाओं के बारे में जानने के बाद और इन गणितीय लिपियों का उपयोग करने के बाद उन्हें नक्षत्र और कुंडली पर विश्वास भी मिला।
Answer:
गुप्त कला का विकास भारत में गुप्त साम्राज्य के शासनकाल में (२०० से ३२५ ईस्वी में) हुआ।[1] इस काल की वास्तुकृतियों में मंदिर निर्माण का ऐतिहासिक महत्त्व है। बड़ी संख्या में मूर्तियों तथा मंदिरों के निर्माण द्वारा आकार लेने वाली इस कला के विकास में अनेक मौलिक तत्व देखे जा सकते हैं जिसमें विशेष यह है कि ईंटों के स्थान पर पत्थरों का प्रयोग किया गया। इस काल की वास्तुकला को सात भागों में बाँटा जा सकता है- राजप्रासाद, आवासीय गृह, गुहाएँ, मन्दिर, स्तूप, विहार तथा स्तम्भ।
चीनी यात्री फाह्यान ने अपने विवरण में गुप्त नरेशों के राजप्रासाद की बहुत प्रशंसा की है। इस समय के घरों में कई कमरे, दालान तथा आँगन होते थे। छत पर जाने के लिए सीढ़ियाँ होती थीं जिन्हें सोपान कहा जाता था। प्रकाश के लिए रोशनदान बनाये जाते थे जिन्हें वातायन कहा जाता था। गुप्तकाल में ब्राह्मण धर्म के प्राचीनतम गुहा मंदिर निर्मित हुए। ये भिलसा (मध्य-प्रदेश) के समीप उदयगिरि की पहाड़ियों में स्थित हैं। ये गुहाएँ चट्टानें काटकर निर्मित हुई थीं। उदयगिरि के अतिरिक्त अजन्ता, एलोरा, औरंगाबाद और बाघ की कुछ गुफाएँ गुप्तकालीन हैं। इस काल में मंदिरों का निर्माण ऊँचे चबूतरों पर हुआ। शुरू में मंदिरों की छतें चपटी होती थीं बाद में शिखरों का निर्माण हुआ। मंदिरों में सिंह मुख, पुष्पपत्र, गंगायमुना की मूर्तियाँ, झरोखे आदि के कारण मंदिरों में अद्भुत आकर्षण है।
गुप्तकाल में मूर्तिकला के प्रमुख केन्द्र मथुरा, सारनाथ और पाटिलपुत्र थे। गुप्तकालीन मूर्तिकला की विशेषताएँ हैं कि इन मूर्तियों में भद्रता तथा शालीनता, सरलता, आध्यात्मिकता के भावों की अभिव्यक्ति, अनुपातशीलता आदि गुणों के कारण ये मूर्तियाँ बड़ी स्वाभाविक हैं। इस काल में भारतीय कलाकारों ने अपनी एक विशिष्ट मौलिक एवं राष्ट्रीय शैली का सृजन किया था, जिसमें मूर्ति का आकार गात, केशराशि, माँसपेशियाँ, चेहरे की बनावट, प्रभामण्डल, मुद्रा, स्वाभाविकता आदि तत्त्वों को ध्यान में रखकर मूर्ति का निर्माण किया जाता था। यह भारतीय एवं राष्ट्रीय शैली थी। इस काल में निर्मित बुद्ध-मूर्तियाँ पाँच मुद्राओं में मिलती हैं- १. ध्यान मुद्रा २. भूमिस्पर्श मुद्रा ३. अभय मुद्रा ४. वरद मुद्रा ५. धर्मचक्र मुद्रा। गुप्तकाल चित्रकला का स्वर्ण युग था। कालिदास की रचनाओं में चित्रकला के विषय के अनेक प्रसंग हैं। मेघदूत में यक्ष-पत्नी के द्वारा यक्ष के भावगम्य चित्र का उल्लेख है।