Hindi, asked by gulab1332, 10 months ago

गोपियों ने श्री कृष्ण के प्रति अपने प्रेम को किसके सामान बताय हे ? ​

Answers

Answered by lovelybhardwaj32
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'' सूरदास के पद ''

ऊधौ ,तुम हौ अति बड़भागी।

अपरस रहत सनेह तगा मैं , नाहिन मन अनुरागी।

पुरानी पात रहत जल भीतर , ता रस देह ना दागी।

ज्यौं जल माहं तेल की गाडरी , बूंद न ताकौं लागी।

प्रति- नदी मैं पाउं न बोरियौ ,दिष्ट न रूप परागी।

'सूरदास' अबला हम भोरी , गुरु चांटी ज्यौं पागी।

प्रस्तुत पंक्तियों में गोपियां उद्धव (श्री कृष्ण के सखा) सेवन करते हुए कह रही हैं कि तुम अभी तक इसके प्रयोग के चक्कर में नहीं पड़े। गोपियों के अनुसार उद्धव उस कमल के पत्ते के समान है , जो हमेशा जल में रहकर भी उन में डूबता नहीं है और ना ही उसके दाग-धब्बे को खुद पर आने देता है। गोपियों ने फिर खुद की तुलना किसी तेल के मटके से की है ,जो निरंतर जल में रहकर भी उस जल से खुद को अलग रखता है।

यही कारण है कि गोपिया उद्योग को भाग्यशाली समझती है , जबकि वह खुद को अभागिन अबला नारी समझती है , क्योंकि वह बुरी तरह से कृष्ण के प्रेम में पड़ चुकी हैं। उनके अनुसार कृष्ण के साथ रहते हुए भी उन्होंने कृष्ण के प्रेम के दरिया में कभी भाव नहीं रखा और ना ही कभी उनके रूप- सौंदर्य का दर्शन किया। जबकि गोपियां कृष्ण के प्रेम में इस तरह पढ़ चुकी है मानो जैसे गूढ़ में चीटियां लिपटी हो।

Answered by akbaraliinld00786
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गोपियाँ कहती हैं कि कृष्ण उनके लिए हारिल की लकड़ी के सामान हैं । जिस तरह हारिल पक्षी लकड़ी के टुकड़े को अपने जीवन का सहारा मंटा है उसी प्रकार श्री कृष्ण भी गोपियों के जीने का आधार है ।

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