गौरी गांधी जी से मिलने जाना चाहती थी' उचित काल भेद बताइए
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा पढ़नेवाले भलीभांति जानते है कि वे बचपन से ही अस्पृश्यता को नहीं मानते थे. उनका मन इन्सान-इन्सान के बीच इतना भेद हो सकता है कि एक को स्पर्श करने से दूसरा भ्रष्ट हो जाता है यह स्वीकार करने को तैयार ही नहीं था. इसलिए मातृभक्त होने के बावजूद वे उकाभाई भंगी को न छूने के अपनी माँ के आदेश का पालन वे नहीं कर पाए थे. आत्मकथा में दक्षिण अफ्रीका में बनी एक प्रसिद्ध घटना का वर्णन है कि कस्तूरबा ने जब एक अस्पृश्य क्लार्क का पॉट साफ करने से इन्कार किया तो गांधीजी उन्हें धमकाकर घर से निकाल देने पर आमादा हो गये थे. पश्चिम में इस घटना का अर्थघटन ऐसा किया जाता है कि गांधीजी अपनी पत्नी के प्रति अन्याय करनेवाले पुरुष थे. लेकिन उनके इस क्रोध के पीछे दलितों के प्रति प्रेम छिपा था यह याद रखना चाहिए.
भारत आकर महात्मा गांधी ने अहमदाबाद के कोचरब में आश्रम शुरू किया तब की बात है. समाज में छुआछुत का बड़ा जोर था. ठक्करबापाने एक बुनकर परिवार को गाँधीजी के आश्रम में रहने के लिए भेजा. गांधीजी ने दुदाभाई नाम के उस बुनकर को सपरिवार आश्रममे रख लिया. अहमदाबाद के सारे वैष्णव इतना गुस्सा हो गए कि आश्रम को आर्थिक मदद मिलना बंद हो गया. गांधीजी ने कहा कि आश्रम नहीं चलेगा तो हम हरिजनवास में जाकर रहेंगे लेकिन दुदाभाई परिवार को आंच नहीं आने देंगे. दूसरी ओर आश्रम के निवासियों को भी दुदाभाई परिवार का रहना खटक रहा था. गांधीजी जिन्हें 'आश्रम के प्राण' कहा करते थे उस मगनलाल गाँधी कि पत्नी संतोकबहन दुदाभाई परिवार के साथ रहना-खाना सह नहीं सकी. इस पर गांधीजी ने अपने परम साथी मगनभाई को आश्रम छोड़ने कि सलाह दी. मगनभाई बुनाई सीखने मद्रास चले गए और छ: महीने तक वहीं रहे. बाद में जब उनका