Hindi, asked by shreshtathota10, 3 months ago

गुरु जी बोबिद दोऊ खड़े, काके लातर
पाय
बलिहारी गुरु अपने जिन गोलिद लियो
बताच​

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Answered by ranjanjha16
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Answer:

आप भले ही हिंदी साहित्य या हिंदी के लेखकों और कवियों से परिचित हो न हो पर संत कबीर का लिखा, ‘गुरु’ को समर्पित एक दोहा आप सभी ने ज़रूर पढ़ा या सुना होगा। 15वीं सदी के मशहूर कवि कबीर कबीर की भाषाएँ सधुक्कड़ी एवं पंचमेल खिचड़ी हुआ करती थी। इनकी भाषा में आपको हिंदी भाषा की सभी बोलियों का मिश्रण मिलेगा, जिसमें राजस्थानी, हरयाणवी, पंजाबी, खड़ी बोली, अवधी तथा ब्रजभाषा सम्मिलित है।

कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे। अपनी कविताओं को वे अपने शिष्यों को सुनाते और वे उन्हें लिख देते, इसलिए उनकी कविताओं को कबीर-वाणी (कबीर का कहा हुआ) कहा जाता है।

इन्हीं वाणियों का संग्रह ” बीजक ” नाम के ग्रंथ मे किया गया, जिसके तीन मुख्य भाग हैं : साखी , सबद (पद ) और रमैनी।

हम एक ऐसे संत के रूप में पहचानते हैं जिन्होंने हर धर्म, हर वर्ग के लिए अनमोल सीख दी है, जिनमें से उनकी सबसे बड़ी सीख थी ‘गुरु के लिए सम्मान’ की!

आईये पढ़ते हैं गुरु के लिए लिखे संत कबीर के सबसे मशहूर दोहे और उनकी व्याख्या –

गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।

बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।।

गुरू और गोबिंद (भगवान) एक साथ खड़े हों तो किसे प्रणाम करना चाहिए – गुरू को अथवा गोबिन्द को? ऐसी स्थिति में गुरू के श्रीचरणों में शीश झुकाना उत्तम है जिनके कृपा रूपी प्रसाद से गोविन्द का दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

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