Hindi, asked by anjanahasini03, 4 months ago

गिरिजा कुमार मथुर का परिचय लिखिए in 8 class question​

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Answered by am0303997
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गिरिजा कुमार माथुर (२२ अगस्त १९१९ - १० जनवरी १९९४) एक कवि, नाटककार और समालोचक थे।

गिरिजा कुमार माथुर का जन्म मध्य प्रदेश के अशोक नगर में हुआ।उनके पिता देवीचरण माथुर स्कूल अध्यापक थे तथा साहित्य एवं संगीत के शौकीन थे। वे कविता भी लिखा करते थे। सितार बजाने में प्रवीण थे। माता लक्ष्मीदेवी मालवा की रहने वाली थीं और शिक्षित थीं। गिरिजाकुमार की प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई। उनके पिता ने घर ही अंग्रेजी, इतिहास, भूगोल आदि पढाया। स्थानीय कॉलेज से इण्टरमीडिएट करने के बाद १९३६ में स्नातक उपाधि के लिए ग्वालियर चले गये। ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज से उन्होंने शिक्षा ग्रहण की तथा सन् १९३८ में उन्होंने बी.ए. किया, १९४१ में उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम॰ए॰ किया तथा वकालत की परीक्षा भी पास की। सन १९४० में उनका विवाह दिल्ली में शकुन्त माथुर से हुआ, जो अज्ञेय द्वारा सम्पादित सप्तक परम्परा ('दूसरा सप्तक') की पहली कवयित्री रहीं। 1943 से 'ऑल इंडिया रेडियो' में अनेक महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए अंग्रेजी और उर्दू के वर्चस्व के बीच हिन्दी को पहचान दिलाई। लोकप्रिय रेडियो चैनल 'विविध भारती' उन्हीं की संकल्पना का मूर्त रूप है। माथुर जी दूरदर्शन के उप-महानिदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुए।

गिरिजाकुमार की काव्यात्मक शुरुआत १९३४ में ब्रजभाषा के परम्परागत कवित्त-सवैया लेखन से हुई। वे विद्रोही काव्य परम्परा के रचनाकार माखनलाल चतुर्वेदी, बालकृष्ण शर्मा नवीन आदि की रचनाओं से अत्यधिक प्रभावित हुए और १९४१ में प्रकाशित अपने प्रथम काव्य संग्रह 'मंजीर' की भूमिका उन्होंने निराला से लिखवायी। उनकी रचना का प्रारम्भ द्वितीय विश्वयुद्ध की घटनाओं से उत्पन्न प्रतिक्रियाओं से युक्त है तथा भारत में चल रहे राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन से प्रभावित है। सन १९४३ में अज्ञेय द्वारा सम्पादित एवं प्रकाशित 'तारसप्तक' के सात कवियों में से एक कवि गिरिजाकुमार भी हैं। यहाँ उनकी रचनाओं में प्रयोगशीलता देखी जा सकती है। कविता के अतिरिक्त वे एकांकी नाटक, आलोचना, गीति-काव्य तथा शास्त्रीय विषयों पर भी लिखते रहे हैं। भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद की साहित्यिक पत्रिका 'गगनांचल' का संपादन करने के अलावा उन्होंने कहानी, नाटक तथा आलोचनाएँ भी लिखी हैं। उनका ही लिखा एक भावान्तर गीत "हम होंगे कामयाब" समूह गान के रूप में अत्यंत लोकप्रिय है।

१९९१ में आपको कविता-संग्रह "मै वक्त के हूँ सामने" के लिए हिंदी का साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा इसी काव्य संग्रह के लिए १९९३ में के० के० बिरला फ़ाउंडेशन द्वारा दिया जाने वाला प्रतिष्ठित व्यास सम्मान प्रदान किया गया। उन्हें शलाका सम्मान से भी सम्मानित किया जा चुका है। गिरिजाकुमार माथुर की समग्र काव्य-यात्रा से परिचित होने के लिए उनकी पुस्तक "मुझे और अभी कहना है" अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।

कृतियाँ

नाश और निर्माण

धूप के धान

शिलापंख चमकीले

जो बँध नहीं सका

भीतरी नदी की यात्रा

साक्षी रहे वर्तमान

पृथ्वीकल्प

मैं वक्त के हूँ सामने

मुझे और अभी कहना है

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