गिरि का गौरव गाकर झर-झर, मद में नस-नस
उत्तेजित कर, मोती की लडियों सी सुन्दर, झरते हैं
झाग भरे निर्झर! गिरिवर के उर से उठ-उठ कर
उच्चाकांक्षाओं से तरूवर, है झांक रहे नीरव नभ
पर अनिमेष, अटल, कुछ चिंता पर।
1. पर्वत का यशगान कौन गा रहे हैं?
पक्षी
वृक्ष
झरने
पत्थर
2. कवि ने मोतियों की लड़ी किसे कहा है?
O वृक्ष पर खिले हुए फूलों को
O झाग से भरे झरने के जल को
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1.jarne
2. jag se bhare karne ke jal ko
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1. झरने।
2. झाग से भरे झरने के जल को।
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