Hindi, asked by ak5301344, 7 months ago

'गुरु कुम्हार सिष कुंभ है, गढ़ि-गढि काढ़े खोट- पंक्ति में 'गढ़ि-गढ़ि काट्टै खोट'
का आशय स्पष्ट कीजिए। गुरु-शिष्य के संबंध का आदर्श रूप क्या है?​

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Answered by shukladivya151
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सांसारिक जीवों को सतमार्ग की ओर प्रेरित करते हुए संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं गुरु कुम्हार है और शिष्य मिट्टी के कच्चे घड़े के समान है जिस तरह घड़े को सुंदर बनाने के लिए अंदर हाथ डाल कर बाहर से थाप मारते हैं ठीक उसी प्रकार शिष्य को कठोर अनुशासन में रखकर अनंत से प्रेम भावना रखते हुए शिष्य की बुराइयों को दूर करके संसार में सम्माननीय बनाता है।

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