Hindi, asked by KanhaAgarwal, 9 months ago

गुरु कुम्हार सिष कुंभ है, गढ़-गढ़ कालै खोट।
अंतर हाथ सहारि दै, बाहर बाहै चोट।।​

Answers

Answered by moksh5677
21

Explanation:

गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढि गढि काढैं खोट।

गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढि गढि काढैं खोट।अंतर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट।।

गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढि गढि काढैं खोट।अंतर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट।। ।। हिन्दी मे इसके अर्थ ।।

गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढि गढि काढैं खोट।अंतर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट।। ।। हिन्दी मे इसके अर्थ ।।संसारी जीवों को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करते हुए शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं- गुरु कुम्हार है और शिष्य मिट्टी के कच्चे घडे के समान है।

गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढि गढि काढैं खोट।अंतर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट।। ।। हिन्दी मे इसके अर्थ ।।संसारी जीवों को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करते हुए शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं- गुरु कुम्हार है और शिष्य मिट्टी के कच्चे घडे के समान है।जिस तरह घडे को सुंदर बनाने के लिए अंदर हाथ डालकर बाहर से थाप मारता है ठीक उसी प्रकार शिष्य को कठोर अनुशासन में रखकर अंतर से प्रेम भावना रखते हुए शिष्य की बुराईयो कों दूर करके संसार में सम्माननीय बनाता है।

Answered by XxCharmingGuyxX
14

Explanation:

गुरु कुम्हार शिष्य कुंभ है गढ़ी गढ़ी काहे कोर्ट अंतर हाथ सहार दे बाहर बाहर चोट का तात्पर्य यह है कि गुरु शिष्य को अंतर्मन से ज्ञान प्रदान करते हुए कभी-कभी बाहरी रूप से चरित्र गठन के लिए चोटिया प्रहार भी करते हैं ठीक उसी प्रकार की मांग भी मिट्टी का घड़ा बनाते समय एक हाथ से सहारा देकर बाहर से फोटो को काटता है

Similar questions