गुरु के माध्यम से ही अपने आंतरिक गुणों को हम प्रकाश में ला सकते है। यदि धर्म के मार्ग पर
चलकर
विव बनता है तो वह अपने जीवन के मार के विकास के लिए अनावृत लगकर जीवन को सफल बनाता है और
सम्यकसान गुण धर्मसे जीवन को ब्रासे जोड़कर करोड़ोजन्मों के कर्मों से मुक्ति प्राप्त करता है कित्यहाका
द्वारा ही संभव है। शिक्षा भी दो माध्यमों से मिलती है। एक जीविकोपार्जन का माध्यम बनती है तथा दूसरी से जीवन
व होती है दोनों में परिपूर्णता गुरु के माध्यम से ही होती है जीविकोपार्जन की शिक्षापाकर यह समारबाही
सुखमेप्रतीत होता है और वह जलते हुए दीपक के प्रकाश जैसा वह बाहरी जीवन में प्रकाश पाता है। दूसरी पाने
के लिए सदगुरुको तलाश होती है। वह सदगुरु कहीं भी कोई भी हो सकता है, जैसे तुलसीदास की सभी
पली बी. जिनकी प्रेरणा से उनके अंतर्मन में प्रकाश भर गया और सारे विकार भूल गए मन स्वच्छ हो
दुर्लभ जीवन को सफल बनाकर हमेशा हमेशा के लिए सुखद जीवन जीए। ऐसे ही ब्रहा ज्ञान च आठ में निरूपण की
सच्ची शिक्षा के बिना सार्थकजीवन नहीं मिलता। सच्चा शान मुक्ति का मार्ग है।
आतरिक गुणों से क्या अभिप्राय है?
सफल कैसे बनाया जा सकता है।
हत्यको स्पष्ट कीजिए
मुक्ति का मार्ग कैसे है?
आप क्या समझते हैं।
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