गुरु के सहित सिख्य सब बूड़े, अंत काल पछिताना।
कहै कबीर सुनो हो संतो, ई सब भर्म भुलाना।
घर घर मन्तर देत
केतिक कहाँ कहा नहिं मानै, सहजै सहज समाना। का भाव सौंदर्य
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गुरु के सहित सिख्य सब बूड़े, अंत काल पछिताना।
कहै कबीर सुनो हो संतो, ई सब भर्म भुलाना।
घर घर मन्तर देत
केतिक कहाँ कहा नहिं मानै, सहजै सहज समाना।
भाव सौंदर्य ➲ इन पंक्तियों के माध्यम से कबीर ने संसार में व्याप्त गलत प्रवृत्तियों पर कटाक्ष व्यंग किया है। कवि के अनुसार समाज में हिंदू मुसलमान धर्म के नाम पर लड़ते हैं और तरह-तरह के पाखंड और आडंबरों द्वारा अपने-अपने धर्म को श्रेष्ठ बताने की कोशिश करते हैं, जबकि कबीर के अनुसार संसार में इन आडंबरों और पाखंडों का कोई महत्व नहीं है। इस कारण वह इन से प्रभावित नहीं होते। कबीर सहज भक्ति को ही सही आचरण मानते हैं।
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