Hindi, asked by kajaljareda31, 10 months ago

गुरू की शिक्षा
गुरुकुल में पढ़ने वाले छात्रों की पढाई पूरी होने पर एक दिन गुरूजी ने सभी कार्या
को मैदान में इकट्ठा होने के लिए कहा। सभी शिष्य मैदान में आकर बड़े हो गए।
गुरुजी ने उनसे कहा, प्रिय शिष्यों, मैं चाहता हूँ कि यहाँ से जाने से पहले आप
सब एक बार दौड़ में भाग लें। इस दौड़ में आपको एक अंधेरी सुरंग से गुजरना
होगा। सभी शिष्या सुरंग से गुजरे, जहाँ जगह-जगह नुकीले पत्थर पड़े थे। दौड़ पूरी
होने पर गुरुजी ने कहा- कुछ शिष्यों ने दौड जल्दी पूरी कर ली और कुछ ने बहुत
अधिक समय लगा दिया, भला ऐसा क्यों ? कुछ शिष्यों ने जवाब दिया कि रास्ते
में नुकीले पत्थर थे जिन्हें हम चुनकर जेब में रखते जा रहे थे ताकि पीछे आने
वालों को पीहा न हो। गुरुजी ने उन सभी शिष्यों को बुलाया जिन्होंने पत्थर चुने
थे और कहा- जिन्हें तुम पत्थर समझ रहे थे, वे वास्तव में बहुमूल्य हीरे ।
जिन्हें मैंने सुरंग में डाला था। ये हीरे तुम सबका उपहार है क्योंकि तुमने दूसरों
की पीड़ा को समझा। यह दौड जिंदगी की सच्चाई को बताती है कि सच्चा विजेता
वही है जो इस दौड़ती दुनिया में दूसरों का भला करते हुए आगे बढ़ता है।​

Answers

Answered by mrsluckysingh7347
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Explanation:

गुरु को अपने शिष्य को अपने समान समझना चाहिए गुरु को किसी भी शिष्य को अपना धर्म जाति इत्यादि को अलग-अलग नहीं समझाना चाहिए गुरु को कभी भी अपने शिष्य को गरीब नहीं समझना चाहिए हर एक शिष्य के लिए फेवरेट गुरु भगवान होते हैं गुरु हर एक शिष्य को अच्छी बातें सिखाते हैं

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