ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सहकारी बैंकों की भूमिका की विवेचना कीजिए ।
Answers
Answer:
ग्रामीण विकास में बैंकों की भूमिका पर निबन्ध | Essay on The Role of Banks in Rural development in Hindi!
भारत की लगभग अस्सी प्रतिशत जनता ग्रामवासिनी है । यदि देश की ग्रामीण जनता के विकास पर कोई ध्यान नहीं दिया जाएगा तो बीस प्रतिशत शहरी लोगों की उन्नति के बल पर राष्ट्रीय उन्नति के स्वप्न देखना बेईमानी हैं । कई शताब्दियों से ग्राम निवासी भूख, रोग, अज्ञानता और शोषण से पीड़ित है ।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद गाँववासियों की अवस्था में सुधार के कई प्रयास किए गए है, लेकिन अभी बहुत कुछ कमियाँ हैं, जिसका सामना हमें करना हैं । गाँवों में सुधार की गति में तीव्रता लाने की आवश्यकता है, ताकि वे भी शहरों के समान विकास के आयामों को छू सके और हम अपने सपनों के भारत की ओर उन्मुख हो सकें ।
1969 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण भारतीय अर्थव्यवस्था के इतिहास की महत्वपूर्ण घटना है । इससे पहले ग्रामीण क्षेत्र हमारी अर्थव्यवस्था का पूर्णत: उपेक्षित हिस्सा था । गाँवों में आय का मुख्य साधन कृषि है । हमारी राष्ट्रीय आय का लगभग पचास प्रतिशत का योगदान ग्रामीण और अर्द्धग्रामीण इलाकों से प्राप्त होता है ।
कृषि पर आधारित उद्योग भी कृषि के उत्पादन पर निर्भर होती है । यह क्षेत्र पिछड़ा और शोषित है । इसके विकास पर ही हमारी सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था का विकास निर्भर करता है । भारतीय अर्थव्यवस्था द्विआयामी है । इसके दो मुख्य क्षेत्र शहरी और ग्रामीण है । दोनों में कोई संबंध नहीं है । ग्रामीण इलाकों में सहकारी ऋणों की सुविधा नही है । गांव वाले महाजन से कर्ज लेते हैं, जो भोले-भाले लोगों से अधिक ब्याज लेकर उनका शोषण करते हैं ।
किसी वित्तीय संस्था से उनका संबंध नहीं होता है । भारतीय रिजर्व बैंक की आर्थिक नीति का प्रभाव साहूकारों पर नहीं पड़ा है । इस प्रकार भारतीय अर्थव्यवस्था के दोनों क्षेत्रों की विशेषताएँ अलग-अलग हैं, जिनका आपस में सामंजस्य नहीं के बराबर है ।
बैकिंग प्रणाली को देश के अंदर तक प्रसारित करने के लिए ग्रामीणों को आसान और सरल किश्तों पर ऋण की सुविधाएं उपलब्ध करवाई जा रही है । इससे कृषि और ग्रामीण उद्योगों को प्रोत्साहन मिला है । इससे हरित क्रांति को भी बढ़ावा मिला है । कृषि उत्पादों में वृद्धि होने से राष्ट्र के विकास को सहयोग प्राप्त हुआ है । कृषि उत्पादन में अवरोध से औद्योगिक विकास को हानि पहुँचती है, जबकि कृषि उत्पादन में विकास से राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है ।
ग्रामीण क्षेत्रों में बैंक सेवा बचत में वृद्धि के लिए उपयोगी है, उस बचत का प्रयोग उत्पादकीय कार्यो में किया जा सकता है । वर्तमान समय में गांवों में बहुत कम बचत होती है, और उसे भी दबाकर रखने या सोना खरीदने में लगा दिया जाता है । कुछ व्यक्ति उसका व्यय सामाजिक रीति-रिवाजों के पालन में कर देते हैं ।