Hindi, asked by naviarora3936, 1 year ago

ग्रामीण जीवन शैली ( गाँव का रहन सहन ) के विषय मे दो मित्रों के बीच संवाद लिखिए l

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Answered by bharattiwariepatrika
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                                                     ग्रामीण जीवन शैली

आज देश में शहरीकरण हावी हो रहा है। रोजगार की तलाश में लोग शहरों की ओर भाग रहे हैं, लेकिन आज भी कुछ लोगों को ग्रामीण संस्कृति ही अच्छी लगती है और वह इसे नहीं छोड़ना चाहते हैं। ग्रामीण जीवन शैली को लेकर दो दोस्तों में चर्चा हुई और दोनों ने अपने-अपने पक्ष रखे। रमेश ने जहां ग्रामीण जीवन शैली को बेहतर बताया तो वहीं सुरेश ने ग्रामीण जीवन शैली को विकास में बाधक बताया। यहां प्रस्तुत है दोनों के बीच हुआ संवाद-

रमेश- ग्रामीण जीवन शैली बेहतर है, क्योंकि गांव का शांत माहौल, खेतों की मिट्टी की महक, चौपाल पर चर्चा आदि जीवन के लिए बहुत उपयोगी है। इससे लोगों को किताबी ज्ञान के साथ व्यावहारिक ज्ञान भी मिलता है। गांवों में ज्यादातर लोगों की जिंदगी कृषि पर निर्भर करती है। कुछ लोग पशुपालन और कृषि आधारित कुटीर उद्योगों द्वारा भी जीविकोपार्जन करते हैं। ज्यादातर ग्रामीण किसान होते हैं। वे काफी मेहनती नम्र एवं उदार होते हैं। किसान जब सुबह-सुबह उगते हुए सूरज के साथ अपने खेतों में हल चलाते हैं तो पक्षियों की चहचहाहट बैलों के चलने की आवाज के साथ जुड़कर कड़ी मेहनत का एक राग जैसा गुनगुनाता हुआ महसूस होता है। किसान अपने शहरी समकक्षों जो शहरों में भौतिकवाद की गलाकाट प्रतियोगिता की वजह से अपनी अच्छाई खो बेठते हैं कि तुलना में स्वभाव से निर्दोष प्रतीत होते हैं। गांवों में त्योहारों एवं मेलों की भरमार होती है। यहां त्योहारों को परंपरागत तरीके से भाईचारे की भावना के साथ मनाया जाता है। होली, बैसाखी, पोंगल, ओणम, दशहरा, दीवाली या ईद कोई भी त्योहार हो लोक संगीत की धुनो पर पूरा गांव एक साथ नाचता है। गांव में सभी लोग बिरादरी के बंधन में बंधकर रहते हैं। वे जीवन की परिस्थितियों चाहे वो कोई दुःख हो या सुख आपस में एक दूसरे के साथ बांटते हैं। हालांकि, उनकी जीवन शैली शहरी लोगों की तुलना में ज्यादा विकसित नहीं होती है फिर भी ग्रामीण लोग गर्मजोशी से भरे हुए एवं अधिक सौहार्दपूर्ण होते हैं। वे एक दूसरे का ख्याल भी ज्यादा रखते हैं और पूरे गांव में सभी लोग एक दूसरे को पहचानते भी हैं। वे महानगरीय शहरों की तरह अलगाव की स्थिति में नहीं रहते हैं।

सुरेश- मित्र रमेश आपकी बात से मैं पूर्णतः सहमत हूं, लेकिन मैं यह कहना चाहता हूं कि ग्रामीण जीवन पूरी तरह से ठीक नहीं है। ग्रामीण जीवन में परेशानियां भी बहुत हैं। वहाँ अकसर भूमि से संबंधित विवाद होते रहते हैं और कई बार एक ही गोत्र में प्रेम विवाह की वजह से भी रक्तपात एवं हिंसा की घटनाएं भी हो जाती हैं। कई बार ग्राम पंचायतें विभिन्न विवादों पर विचार-विमर्श करते हुए बहुत कठोर और निर्मम निर्णय सुना देते हैं। जिनसे लोगों का जीवन दुख और दर्द से भरी हुई एक कहानी बन के रह जाता है। गांव के लोग अपनी शहरी बाजारों में अपने कृषि की उपज जैसे अनाज, फल और सब्जियों की बिक्री पर निर्भर रहते हैं और साथ ही शहरी लोग ग्रामीण क्षेत्रों से की जा रही जीवन के लिए आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति के बिना जीवित नहीं रह सकते हैं। गांवों से लोग रोजाना आधुनिक जीवन की नवीनतम सुख-सुविधाओं की आवश्यक वस्तुओं को खरीदने, फिल्म देखने, आनंद मनाने एवं शहरी प्रतिष्ठानों में नौकरी करने के लिए सफर करके शहर आते हैं। वास्तव में भारत का समग्र विकास गांवों और शहरों के सामंजस्यपूर्ण विकास के बिना असंभव है क्योंकि ये दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं।

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