ग्रामीण महिलाओं ने अपनी स्वाधीनता, आज़ादी और गतिशीलता को अभिव्यक्त करने के लिए प्रतीक के रूप में साइकिल को > चुना है। जिस किसी नवसाक्षर अथवा नई-नई साइकिल चलानेवाली महिला से मैंने बातचीत की. उसने साइकिल चलाने और
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लेखक कहता है कि अब पुडुकोट्टई का नजारा बहुत ही अदभुत है जहाँ पहले मुस्लिम लड़कियों को घर से बाहर निकलने की बिलकुल आजादी नहीं थी, वह हमेशा परदे में रहती थी, घर में कैद रहती थी और पुरानी रूढ़िवादी परम्पराओं में जाकड़ी हुई थी, ग्रामिण पुडुकोट्टई इलाके की इन महिलाओं ने भी अब बढ़-चढ़ कर साइकिल चलाना सीख लिया है और अब यह चारों तरफ दिखाई देती है। जमीला बीवी जोकि एक मुस्लिम युवती है, जिसने साइकिल चलाना शुरू किया है, लेखक से कहती हैं कि – साइकिल चलना उनका अधिकार है, जिस तरह से पुरूषों को आजादी मिलती है, साइकिल चलाने की या कोई वाहन चलाने की, घर से बाहर निकल कर काम करने की तो स्त्री होने के नाते उनको भी यह अधिकार मिलना चाहिए। अब वे भी कहीं भी जा सकती हैं। अब उन्हें बस का इंतजार नहीं करना
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