History, asked by KingRH767, 9 months ago

ग्राम वातो प्रकाशित एक असाधारण पत्रिका थी कथन का आलोचनात्मक वणेन कीजिए

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Answered by Piyush4243
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Answer:प्रो॰ रमेश गौतम अध्यक्ष, हिंदी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली-110007

पत्र-पत्रिकाएँ मानव समाज की दिशा-निर्देशिका मानी जाती हैं। समाज के भीतर घटती घटनाओं से लेकर परिवेश की समझ उत्पन्न करने का कार्य पत्रकारिता का प्रथम व महत्त्वपूर्ण कर्त्तव्य है। राजनीतिक-सामाजिक चिंतन की समझ पैदा करने के साथ विचार की सामर्थ्य पत्रकारिता के माध्यम से ही उत्पन्न होती है। पत्रकारिता ने युगों से अपने इस दायित्व का निर्वाह किया तथा दायित्व-निर्वहन की समस्त कसौटियों को पूर्ण करते हुए समय-समय पर अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज की। यह अध्ययन करना अपने-आप में अत्यंत रोचक है कि पत्रकारिता की यह यात्रा कब और कैसे आरंभ हुई और किन पड़ावों से गुजरकर राष्ट्रीयता के मिशन से व्यावसायिकता तक की यात्रा को उसने संपन्न किया।

आशादी से पूर्व का युग राष्ट्रीयता औरराष्ट्रीय चेतना की अनुभूति के विकास का युग था। इस युग का मिशन और जीवनका उद्देश्य एक ही था : स्वाधीनता की चाह और प्राप्ति का प्रयास। इस प्रयास के तहत् ही हिंदीपत्र-पत्रिकाओं का आरंभ हुआ। इस संदर्भ में इस तथ्य को भी ध्यान में रखना होगा कि हिंदी क्षेत्रों के बाहर भी विशेषकर हिंदीतर भाषी क्षेत्रों में भाषाको राष्ट्रीय अस्मिता का वाहक मानकर सभी पत्रकारों ने हिंदी को ही अपनी ‘भाषा’ के रूप में चुना और हिंदी भाषा के पत्र-पत्रिकाओं के संवर्धन में अपना योगदान दिया।

भारतेंदु के आगमन से पूर्व ही पत्रकारिता का आरंभ हो चुका था। हिंदी भाषा का प्रथम समाचार-पत्र ‘उदन्त मार्तण्ड’ 30 मई, 1826 को कानपुर निवासी पं॰ युगल किशोर शुक्ल ने निकाला। सुखद आश्चर्य की बात यह थी कि यह पत्र बंगाल से निकला और बंगाल में ही हिंदी पत्रकारिता के बीज प्रस्पुफटित हुए। ‘उदन्त मार्तण्ड’ का मुख्य उद्देश्य भारतीयों को जागृत करना तथा भारतीयों के हितों की रक्षा करना था। यह बात इसके मुख पृष्ठ पर छपी पंक्ति से ही ज्ञात होती है:

यह उदन्त मार्तण्ड अब पहले पहल हिंदुस्तानियों के हित के हेतु जो आज तक किसी ने नहीं चलाया .....।

समाचार-पत्रों एवं पत्रिकाओं का मूल उद्देश्य सदैव जनता की जागृति और जनता तक विचारों का सही संप्रेषण करना रहा है। महात्मा गांधी की पंक्तियाँ हैं : समाचार पत्र का पहला उद्देश्य जनता की इच्छाओं, विचारों को समझना और उन्हें व्यक्त करना है। दूसरा उद्देश्य जनता में वांछनीय भावनाओं को जागृत करना है। तीसरा उद्देश्य सार्वजनिक दोषों को निर्भयतापूर्वक प्रकट करना है।

समाचार-पत्र और पत्रिकाओं ने इन उद्देश्यों को अपनाते हुए आरंभ से ही भारतीयों के हित के लिए विचार को जागृत करने का कार्य किया। बंगाल से निकलने वाला ‘उदन्त मार्तण्ड’ जहाँ हिंदी भाषी शब्दावली का प्रयोग करके भाषा-निर्माण का प्रयास कर रहा था वहीं काशी से निकलने वाला प्रथम साप्ताहिक पत्र ‘बनारस अखबार’ पूर्णतया उर्दू और फारसीनिष्ठ रहा। भारतेंदु युग से पूर्व ही हिंदी काप्रथम समाचार-पत्र (दैनिक) ‘समाचार सुधावर्षण’ और आगरा से ‘प्रजाहितैषी’ का प्रकाशन हो चुका था। अर्जुन तिवारी पत्रकारिता के विकास को निम्नलिखित कालखण्डों में बाँटते हैं:

1. उद्भव काल (उद्बोधन काल) - 1826-1884 ई॰

2. विकासकाल

(क) स्वातंत्रय पूर्व काल

(अ) जागरण काल - 1885-1919

(आ) क्रांति काल - 1920-1947

(ख) स्वातंत्रयोत्तर काल - नवनिर्माण काल - 1948-1974

3. वर्तमान काल (बहुउद्देशीय काल) 1975 ...

भारतेंदु ने अपने युग धर्म को पहचाना और युग को दिशा प्रदान की। भारतेंदु ने पत्र-पत्रिकाओं को पूर्णतया जागरण और स्वाधीनता की चेतना से जोड़ते हुए 1867 में ‘कवि वचन सुधा’ का प्रकाशन किया जिसका मूल वाक्य था : 'अपधर्म छूटै, सत्व निज भारत गहै' भारत द्वारा सत्व ग्रहण करने के उद्देश्य को लेकर भारतेंदु ने हिंदी पत्रकारिता का विकास किया और आने वालेपत्रकारों के लिए दिशा-निर्माण किया। भारतेंदु ने कवि वचन सुधा,हरिश्चंद्र मैगशीन, बाला बोधिनी नामक पत्र निकाले। ‘कवि वचन सुधा’ को 1875 में साप्ताहिक किया गया जबकि अनेकानेक समस्याओं के कारण 1885 ई॰ में इसे बंद कर दिया गया। 1873 में भारतेंदु ने ‘हरिश्चंद्र मैगजीन’ का प्रकाशन किया जिसका नाम 1874 में बदलकर ‘हरिश्चंद्र चन्द्रिका’ कर दिया गया। देश के प्रति सजगता, समाज सुधार, राष्ट्रीय चेतना, मानवीयता, स्वाधीन होने की चाह इनके पत्रों की मूल विषयवस्तु थी। स्त्रियों को गृहस्थ धर्म और जीवन को सुचारु रूप से चलाने के लिए भारतेंदु ने ‘बाला बोधिनी’ पत्रिका निकाली जिसका उद्देश्य महिलाओं के हित की बात करना था।

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