'गुरू और चेला' कविता की दस पंक्तियाँ
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गुरु एक थे और था एक चेला, चले घूमने पास में था न धेला। चले चलते-चलते मिली एक नगरी, चमाचम थी सड़कें चमाचम थी डगरी। मिली एक ग्वालिन धरे शीश गगरी, गुरु ने कहा तेज़ ग्वालिन न भग री। बता कौन नगरी, बता कौन राजा, कि जिसके सुयश का यहाँ बजता बाजा।
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