गुरु और शिष्य के बारे में निबंध
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गुरु एक कुम्हार की तरह होता हैं, जो कच्ची मिटटी का सही उपयोग कर एक आकर्षक घड़ा बना देता हैं. एक अच्छा गुरु अपने शिष्य का जीवन तराश सकता हैं, निखार सकता हैं. किसी भी व्यक्ति की सफलता और उनके जीवन में सफल होने के लिए गुरु का होना जरुरी हैं, किसी ने ठीक ही कहा हैं, गुरु बिन घोर अँधेरा अर्थात इस संसार में गुरु ही एकमात्र वो इंसान हैं, जो अपने शिष्य को अज्ञानता के अन्धकार से निकालकर ज्ञान के प्रकाश में इस दुनिया का परिचय करवाता हैं.
गुरु शिष्य की यह हमारी परम्परा अतीत से चली आ रही हैं, भारतीय संस्कृति में गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश की उपाधि देकर सर्वोच्च स्थान प्रदान किया हैं. हरेक बच्चे का गुरु उनका अच्छा मार्गदर्शक होता हैं. गुरु का अर्थ विद्यालयी, कॉलेज, ट्यूशन शिक्षक से न होकर गुरु वह व्यक्ति हैं जो आपकी भलाई चाहता हैं तथा आपकों सही राह दिखाता हैं.
बच्चें की पहली गुरु उनकी माँ ही होती हैं, जो जन्म से 5-6 वर्षो तक उनके आचार-विचार, खान-पान और अन्य के साथ किस तरह का व्यवहार किया जाना चाहिए. कि शिक्षा प्रदान करती हैं. अकसर नन्हा बालक वही समझता और सीखता हैं, जो उनके परिवार और समाज में हो रहा हैं.
गुरु तो उस कुम्हार की तरह होता हैं, जो कीचड़ में से मिट्टी को निकालकर सुंदर घड़ा बना लेता हैं. गुरु शिष्य को ज्ञानवान बनाकर उन्हें सुसंस्कारित बनाकर उनके भीतर छूपे व्यक्तित्व को उकेरता हैं. गुरु अपने शिष्य को जीवन में निरंतर आगे बढ़ने, आने वाली परेशानियों का सामना करने तथा निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति में मदद करता हैं.