गुरु और शिष्य का संबंध कल और आज निबंध लेखन
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प्राचीन काल में गुरु और शिष्य के संबंधों का आधार था, गुरु का ज्ञान, मौलिकता और नैतिक बल, उनका शिष्यों के प्रति स्नेह भाव, तथा ज्ञान बांटने का निःस्वार्थ भाव.
शिष्य में होती थी, गुरु के प्रति पूर्ण श्रद्धा, गुरु की क्षमता में पूर्ण विश्वास तथा गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण एवं आज्ञाकारिता. अनुशासन शिष्य का सबसे महत्वपूर्ण गुण माना गया है.
आज :- आज के भौतिकतावादी समाज में ज्ञान से अधिक धन को महत्व दिया जाने लगा है. अतः आज अध्यापन भी निस्वार्थ नहीं रह कर, एक व्यवसाय के रूप में नज़र आता है. छात्र और शिक्षक का सबंध भी एक उपभोक्ता और सेवा प्रदाता का होता जा रहा है. छात्रों के शिक्षा लिए गुरुओं से प्राप्त होने वाले ज्ञान के बजाय, धन से खरीदी जाने वाली वस्तु मात्र बन कर रह गयी है. इससे शिष्य की गुरु के प्रति अगाध श्रद्धा और गुरु का छात्रों के प्रति स्नेह और संरक्षक भाव लुप्त होता जा रहा है.