गुरु पइयां लागंव नाय लखा दीजो हो। जनम-जनम का सोया मनुवा, सब्दन मार जगा दीजो हो। घट अँधियार नैन नहीं सूझे, ज्ञान का दीप जगा दीजो हो। विष की लहर उठत् घट अंतर, अमृत बूंद चुवा दीजो हो।
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भावार्थ:-
इस पद में धर्मदास जी गुरु से नाम की ज्ञान व समझ की बख्शिस के लिए आव्हान करते हैं ताकि उस नाम शब्द रूपी अमृत बूंद से हम सबकी क्षुधा शांत हो जाएँ और अज्ञानता रूपी अंधकार ज्ञान रूपी प्रकाश से दूर हो जाए व हम अपने लक्ष्य पर पहुंच जाएँ ।
शब्दार्थ:-
लखाना - दिखाना , बताना
चुवाई दीजो - टपकाना ,दिलाना
#SPJ2
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