गौरी सीताराम जी और उनके बच्चों के बारे में क्या सोचती थी
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गौरी एक सशक्त नारी चरित्र है जो अपने स्नेह और त्याग से भारतीय स्त्री के गौरव को महामंडित करती है।
गौरी, बाबू राधाकृष्ण की इकलौती, उन्नीस वर्षीय, सुंदर कन्या थी। राधाकृष्ण तथा उनकी पत्नी कुंती गौरी के विवाह को लेकर अत्यंत चिंतित रहते थे। वे अपनी इकलौती बेटी का विवाह किसी योग्य वर के साथ करना चाहते थे। गौरी को अपने माता-पिता का इस तरह परेशान रहना अच्छा नहीं लगता था। वह स्वभाव से दृढ़ निश्चयी और निर्भीक थी। वह चाहती थी कि अपने पिता से जाकर कह दे कि वह विवाह को अधिक महत्त्व नहीं देती है और पिता के लिए उसका विवाह इतना महत्त्वपूर्ण है तो किसी से भी करवा दे। वह हर हाल में सुखी और संतुष्ट रहेगी। किंतु एक भारतीय युवती होने के कारण गौरी में लज्जा और संकोच का भाव है। अत: बहुत कोशिश के बावज़ूद वह अपने माता-पिता से कुछ नहीं कह पाती है।
राधाकृष्ण गौरी के लिए सीताराम जी को देखने गए थे किन्तु उन्हें निराशा हाथ लगी। उन्होंने लौटकर अपनी पत्नी को बताया कि वह लड़का नहीं बल्कि ३५-३६ वर्ष का आदमी है जिसकी पत्नी का देहांत हो चुका है और उसके दो बच्चे भी हैं। बच्चों की परवरिश के लिए ही वे दूसरा विवाह करना चाहते हैं। सीताराम जी को पत्नी की नहीं बल्कि अपने बच्चों के लिए एक धाय की जरूरत थी किन्तु सीताराम जी स्वभाव से नेक और ईमानदार इनसान थे।
" ...वह आदमी कपटी नहीं है। उनके भीतर और बाहर कुछ हो ही नहीं सकता। हृदय तो दर्पण की तरह साफ़ है। पर उनका खादी का कुरता, गाँधी टोपी, फटे-फटे चप्पल देखकर जी हिचकता है।"
भले ही गौरी और उसकी माँ कुंती को सीताराम जी के गुण अच्छे लगे हों पर राधाकृष्ण जी ने बेटी के लिए नया वर खोज लिया जिसकी उम्र २४-२५ साल की थी और नायब तहसीलदार के पद पर नियुक्त था। गौरी विवेकवान है। उसे अच्छे-बुरे की पहचान है। वह सीताराम जी की देशभक्ति व सादगी के विषय में जानकर मन ही मन उन्हें अपना पति स्वीकार कर लेती है। गौरी का देशभक्ति से प्रभावित होना उसके अन्तर्मन में छिपे देशभक्ति के भावों को उजागर करता है। गौरी का मानना है कि यदि सीताराम जी चाहते तो बी०ए० पास करने के बाद वे भी प्रयत्न करके नायब तहसीलदार बन सकते थे और अँग्रेजी सरकार की गुलामी करने में अपना गौरव समझते लेकिन उन्होंने देश को गुलामी से मुक्त करने का संघर्षमयी रास्ता चुना है। सीताराम जी को याद करते ही गौरी का माथा श्रद्धा से झुक जाता है।
गौरी कर्त्तव्यनिष्ठ युवती है। अपना कर्त्तव्य निश्चित करने में उसे ज़रा भी समय नहीं लगता था। सीताराम जी के जेल जाते ही बच्चों के प्रति अपना कर्त्तव्य उसने निश्चित कर लिया। वह माँ के पास जाकर, सारा साहस बटोर कर दृढ़ता से कहती है-"माँ मैं कानपुर जाऊँगी।" उसमें ममत्व का भाव था। सीताराम जी के दो छोटे-छोटे प्यारे बच्चों ने गौरी के अंदर ममता का भाव जगा दिया था। सीराराम जी के जेल चले जाने पर उनके बच्चों की देखभाल कौन करेगा? यह चिन्ता इतनी बलवती थी कि उसने गौरी को अपना कर्त्तव्य निश्चित करने का अपूर्व साहस दिया। इस तरह वह ज़िद करके नौकर के साथ कानपुर जाकर बच्चों की देखभाल करती है। हर महीने बच्चों की कुशलता का समाचार कारावास में सीताराम जी को भिजवाती है। सज़ा पूरी होने पर सीताराम जी जब घर पहुँचते हैं तो बच्चों को गौरी के साथ देखकर अचंभित हो जाते हैं। गौरी झुककर उनकी पग-धुलि अपने माथे से लगाकर उन्हें अपना पति स्वीकार करती है।
गौरी त्याग की मूरत है। तहसीलदार साहब से उसका विवाह एक वर्ष बाद हो जाता, जहाँ उसे धन-दौलत की कमी नहीं रहती। परन्तु उसने उसे छोड़कर सीताराम जी के दोनों बच्चों की माँ बनने का निश्चय किया। इससे उसकी त्याग और वात्सल्य की भावना उभरकर सामने आती है। इस प्रकार विवेकपूर्ण कार्य करके गौरी ने सच्ची भारतीय नारी का उदाहरण प्रस्तुत किया है।
निष्कर्ष में हम कह सकते हैं कि गौरी एक कर्त्तव्यनिष्ठ, हठी, साहसी, त्यागी, दृढ़निश्चयी, विवेकी एवं ममत्वपूर्ण नारी थी। वह अपने चारित्रिक गुणों से सभी के मन को मोह लेती है, साथ ही पाठकों में देशप्रेम का भाव भी जगाती है।