ग्रीष्मावकाश में अपने मित्रों के साथ किसी पर्वतीय स्थान पर जाने की अनुमति हेतु पिता को पत्र
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सराय रोहिल्ला,
दिल्ली।
दिनांक 17 मार्च, 20XX
प्रिय मित्र,
सस्नेह नमस्ते !
मित्र तुम कैसे हो? कई दिन हो गए, तुम्हारा कोई पत्र नहीं आया। अब तो तुम्हारी परीक्षाएँ भी समाप्त हो गई हैं। अब तो तुम्हें पत्र लिखना चाहिए था। मुझे तुम्हारे पत्र का बेसब्री से इन्तजार रहता हैं।
खैर, तुम्हें याद होगा, पिछली छुट्टियों में हमने मिलकर एक कार्यक्रम बनाया था कि परीक्षाओं के बाद हम वैष्णो देवी, जम्मू घूमने जाएँगे। अब परीक्षाएँ समाप्त हो गई हैं। मुझे लगता हैं अब हमें माता के दर्शन के लिए चलना चाहिए। मैंने अपने घर में इजाजत ले ली हैं। तुम भी जल्दी ही अपने घरवालों से पूछकर उनकी इच्छा मुझे बता दो, ताकि मैं ट्रेन की टिकटें बुक करा सकूँ।
अच्छा होगा, यदि इस बीच तुम कभी मेरे पास आओ, ताकि मिल-बैठकर सुविधानुसार हम पूरी योजना तैयार कर लें। मैं तुम्हारे पत्र की प्रतीक्षा करूँगा।
घर में माता-पिता को मेरा सादर नमस्कार तथा दीपू को स्नेह देना।
तुम्हारा मित्र,
अखिलेश यादव
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