[ गिरिधर की कुंडलियाँ ]पाठ से कुंडली संख्या 3 और 4 की व्याख्या लिखिए
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गिरिधर की कुंडलियाँ पाठ से कुंडली संख्या 3 व 4 की व्याख्या...
कुंडली नंबर 3 की व्याख्या...
बीती ताहि बिसारि दे, आगे की सुधि लेइ।
जो बनि आवै सहज में, ताही में चित देइ॥
ताही में चित देइ, बात जोई बनि आवै।
दुर्जन हंसे न कोइ, चित्त मैं खता न पावै॥
कह ‘गिरिधर कविराय यहै करु मन परतीती।
आगे को सुख समुझि, होइ बीती सो बीती॥
व्याख्या ►गिरिधर कविराय कहते हैं कि जो बात बीत गई है, उसे भूल जाओ और बीती हुई बातों को भूलकर आगे की सोचो। जो बीत गया है उसे याद करने से कोई लाभ नहीं होने वाला। अपना मन उसी में लगा जिसमें मन लगता है, अपना मनमाफिक कार्य करने से कार्य में सफलता जरूर मिलती है। जो बुरे लोग होते हैं, वह अगर आप पर हंसते हैं, तो उसकी चिंता मत कर। बुरे लोगों का काम हमेशा मजाक उड़ाना ही है बल्कि उनकी परवाह ना कर अपने काम में लगे रहने से काम में सफलता अवश्य प्राप्त होती है। बीती बातों को भूलकर आगे की सोचना ही सुख की नींव रखता है।
कुंडली नंबर - 4 की व्याख्या...
गुनके गाहक सहस नर, बिन गुन लहै न कोय ।
जैसे कागा-कोकिला, शब्द सुनै सब कोय ।
शब्द सुनै सब कोय, कोकिला सबे सुहावन ।
दोऊ को इक रंग, काग सब भये अपावन ॥
कह गिरिधर कविराय, सुनौ हो ठाकुर मन के ।
बिन गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुनके ॥
व्याख्या ► गिरिधर कविराय कहते हैं कि रंग-रूप का महत्व नही होता, गुणों का महत्व होता है। कौवे और कोयल का रंग रूप एक जैसा है पर उनके गुणों में अंतर है। कोयल का स्वर जहां अत्यन्त मधुर होता है, वही कौवे का स्वर बेहद कर्कश होता है। इस कारण रंग रूप समान होने के बावजूद लोग केवल कोयल को ही पसंद करते हैं, कौवे को नही। क्योंकि दोनों के गुणों में अंतर है। यहां पर कवि सीधा संदेश दिया है कि गुणों को अपनाओ, रंग-रूप को महत्व न दो।
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गिरिधर कविराय ने कुंडली के माध्यम से व्यवहारिक ज्ञान को किस तरह परिचित कराया है।
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साई अपने चित्त की, भूलि न कहिए कोइ।
तब लग मन में राखिए, जब लग कारज होइ।।
जब लग कारज होइ, भूलि कबहूँ नहिं कहिए।
7 दुरजन हँसे न कोइ, आप सियरे वै रहिए।।
कह गिरिधर कविराय, बात चतुरन की ताईं।
करतूती कहि देत, आप कहिए नहि साईं।।
गिरिधर की इस कुंडली का भावार्थ बताइये
https://brainly.in/question/13842458
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