गुरैया के लिए मुसीबत बन चुकी उchi इमारत अनुच्छेद
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दिल्ली (ब्यूरो)। देश के सभी शहर कबूतरों के लिए आश्रय स्थल बनते जा रहे हैं। दूसरी ओर यह गौरेया के लिए मुसीबत बन गए हैं। नतीजा है कि गौरैया कम होती जा रही है और कबूतर अपनी आबादी बढ़ाने में कामयाब हो रहे हैं। ऊंची इमारतों में गौरेया नहीं रह सकती जबकि कबूतरों को ऊंचे मकान ही पसंद हैं। लगातार सिकुड़ती हरियाली और भोजन की कमी से गौरेया भारत ही नहीं, बल्कि दुनियाभर के महानगरों से गायब होती जा रही है। शहरों में छोटे मकानों की जगह गगनचुंबी इमारतें बढ़ने से गौरेया की जगह लगातार कबूतर लेते जा रहे हैं।
केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय भी मानता है कि देशभर में गौरेया की संख्या में कमी आ रही है। देश में मौजूद पक्षियों की 1200 प्रजातियों में से 87 संकटग्रस्त की सूची में शामिल हैं। हालांकि बर्ड लाइफ इंटरनेशनल ने गौरेया (पासेर डोमेस्टिक) को अभी संकटग्रस्त पक्षियों की सूची में शामिल नहीं किया है, लेकिन सलीम अली पक्षी विज्ञान केंद्र कोयंबटूर और प्राकृतिक विज्ञान केंद्र मुंबई समेत विभिन्न संगठनों के अध्ययन में यह बात सामने आई है कि इनकी तादाद लगातार घट रही है। केंद्रीय पर्यावरण व वन मंत्रालय के एक अफसर का कहना था कि जैसे-जैसे शहरों में छोटे-छोटे मकानों की जगह ऊंची इमारतें लेती जाएंगी, गौरेया की जगह कबूतर बढ़ेंगे। ऊंची इमारतों में गौरेया नहीं रह सकती जबकि कबूतरों को ऊंचे मकान ही पसंद हैं।