ग्रहण के दो भिन्न अर्थ
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ग्रहण संज्ञा पुं॰ सूर्य, चंद्र या किसी दूसरे आकाशचारी पिंड की ज्योति की आवरण जो दृष्टि और उस पिंड के मध्य में किसी दूसरे आकाशचारी पिंड के आ जाने के कारण उसकी छाया पड़ने से होता है; अथवा उस पिंड और उसे ज्योति पहुँचानेवाले पिंड़ के मध्य में आ पड़नेवाले किसी अन्य पिंड की छाया पड़ने से होता है ।
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ग्रहण के एक से अधिक अर्थ – लेना, चन्द्र-सूर्यग्रहण।
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