गिरते नैतिक मूल्य पर दो व्यक्तियों के बीच संवाद
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ये जो आज की पीड़ी है जिसमे मैं भी आता हूँ जरूरकही न कही हम अपना नैतिक मूल्य खोते जा रहे है और ये दर नित प्रतिदिन बढतीजा रही है. जो संस्कार हमारे पूर्वजों के थे वो संस्कार हम अपनी नई पीड़ीको देने में कामयाब नही हो पा रहे है और मेरी नजर में इसके दोषी भी हमख़ुद है, हमारा परिवार है, हमारे माँ बाप है.
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