गोसेवा विषय पर निबंध
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गाय विश्व की माता है।
सम्पूर्ण विश्व में गाय के समान उपकारी अन्य कोई भी प्राणी नहीं है।
हमारे लिए सबसे बड़ा जो कल्याणकारी, बल, वीर्य, शक्ति को देने वाली, मन को पवित्र रखने वाली रत्न है।
वह त्यागमूर्ति गौ (Cow) है। इसलिए इसकी रक्षा करना प्रत्येक मानव का धर्म है।
जन्म देने वाला माता एक समय सीमा के अन्दर अपने दूध को ग्रहण कराती है परन्तु कल्याणमयी, दयालु गौ माता जीवन भर अपने अनमोल रत्न को देती है।
कितना उपकार करती है मनुष्यों पर गौ माता, इस पर विचार विशेष नहीं किया जाता।
अतः सम्पूर्ण मानव जाति का यह परम कर्तव्य है कि गौ की रक्षा कर अपनी रक्षा करें।
हमारे सद्गुरु अध्यात्म मार्तण्ड महर्षि सदाफलदेव जी महाराज भी गौ की विशेषता एवं उसकी रक्षा पर बल देते हुए कहते हैं कि
तुम्हारे जीवन का प्राण, बल, वीर्य का मूल स्रोत आदर्श चरित्र बनाने वाले भारत का उतम रत्न ‘गौ’ (Cow) है।
गौ की सेवा और रक्षा क्यों करना चाहिये?’
स्वामी जी ने आर्यो का मुख्य, उत्तम और पवित्र चिन्ह प्रत्येक द्वार पर गौ है,
यह कहकर संकेत किया तथा गौ रक्षा करना मनुष्य मात्र का धर्म है, जिससे सबको बराबर लाभ होता है
ऐसा कहकर ईसाई और मुसलमानों को भी गौ (Cow) पालन व रक्षा करने को कहा।
वास्तव में विश्व की सर्वाधिक कल्याणमयी एवं पवित्रतम रत्न गौ है।
गौ को शास्त्रों में जगन्माता तथा त्यागमूर्ति कहकर बतलाया गया है,
महाभारत के अनुशासन पर्व में महाराज युधिष्ठिर को भीष्म पितामह गौ का माहात्म्य सुनाते हुए कहते हैं कि
गौ (Cow) सभी सुखों को देने वाली है और वह सभी प्राणियों की माता है।
अतः हमें गौ की रक्षा अवश्यमेव करनी चाहिए जिससे हमारी भी रक्षा हो सके।
हम गौ रक्षा भी करें और गौ सेवा भी करें क्योंकि गौ की रक्षा एवं सेवा में ही हमारे राष्ट्र का विकास है।
गौ सेवा एवं रक्षा से ही भारत देश में वैसे वीर योद्धा, विवेकी, मेधावी, चरित्रवान, बलवान, ओजवान, तेजवान व्यक्ति होंगे जैसे प्राचीन काल में हुए हैं। गौ सेवा एवं गौ रक्षा से सर्व देश की रक्षा है क्योंकि गौ (Cow) सर्व शक्ति प्रदायिनी है।
गौ की रक्षा एवं गौ सेवा से ही अहिंसा-धर्म को सिद्ध कर भगवान महावीर एवं गौतम बुद्ध ने महान धर्मो को सम्पूर्ण विश्व में फैलाया था।
मनुष्य गौ सेवा के प्रभाव से ओजस्वी, तेजस्वी, बलशाली तथा मेधावी व पवित्र हो जाता है
क्योंकि गौ के दूध (Cow Milk) में तेज-ओज, बल, वीर्य को बढ़ाने वाली अद्भुत शक्ति निहित है।
गौ का मन अति पवित्र, निर्मल तथा सरल होता है जिनकी सेवा से मनुष्य का मन भी शुद्ध हो जाता है, पवित्र हो जाता है तथा सरल हो जाता है।
प्राचीन काल में गौ सेवा से लोग बड़े-बड़े कार्यो में सहज रूप से सफलता प्राप्त कर लेते थे।
आज भी गांवों में या अन्य स्थानों में जाने पर पता चलता है कि जो भी पहलवान, बलशाली, पराक्रमी, महारथी, वीर पुरुष हुए
सभी-के-सभी ने गौ सेवा की है तथा गौ द्वारा प्राप्त गौदुग्ध का नियमित पान किया।
गौ के दूध पीने से ही बल प्राप्त होता है, बुद्धि तीक्ष्ण होती है।
पहलवानों का तथा अन्य बलशाली व्यक्तियों का तो यहाँ तक कहना है कि गौ सेवा के करने एवं गौ के दूध (Cow Milk) से बनी वस्तुओं के सेवन से
हमें इतना लाभ मिलता है जिसका मैं वर्णन नहीं कर सकता।
गौ (Cow) के दुग्ध से राजा, रंक, स्त्री, पुरुष, स्वस्थ, रुग्ण तथा आबाल-बृद्ध सभी का पोषण होता है।
गौ के गोबर तथा गोमूत्र अपवित्र को भी पवित्र करके पर्यावरण को शुद्ध बना देती है।
इसकी सेवा से तथा रक्षा से जो विशेष लाभ है वो हमारे वैदिक काल के ऋषि-महर्षि पूर्ण रूप से जानते थे
और जानकर गौ की सेवा तथा रक्षा किया करते थे।
प्राचीन धर्म-शास्त्रों में अनेक ऐसे स्थानों में गौ सेवा से प्राप्त लाभों के विषय में बतलाया गया है।
पुराणों में तो अनेक जगह ‘गोमती-विद्या’ और गोसावित्रीस्तोत्र का उल्लेख मिलता है जो व्यास देव जी द्वारा रचित है।
इसमें वे कहते हैं कि ‘संसार की रक्षा के लिए वेद और यज्ञ ही दो श्रेष्ठ उपाय हैं
और इन दोनों का संचालन गाय के दूध, घी और बैलों के द्वारा उत्पन्न किये व्रीहि से निर्मित चरु, पुरोडाश, हविष्य आदि से ही सम्पन्न होता है।
मूलतः ब्राह्म्ण, वेद और गौ ये तीनों एक ही हैं।
यज्ञ की सम्पन्नता के लिए ब्राह्म्ण और गौ ये दोनों अलग-अलग रूप में दिखते हैं।
ब्राह्म्णों के पास तो वेद, मन्त्र और या कराने की बुद्धि और विधियाँ हैं तथा उन्ही यज्ञों के लिए हविष्य की सारी सामग्री गौ (Cow) के उदर में संनिहित है-
ब्राह्मणश्चैव गावश्च कुलमेकं द्विधाकृतम्।
एकत्र मन्त्रस्तिष्ठन्ति हविश्न्यत्र तिष्ठति।।
उनके कथनानुसार गायों से सात्विक वातावरण का निर्माण होता है।