गीत
बीती विभावरी जाग री।
अम्बर-पनघट में डुबो रही-
तारा-घट
ऊषा-नागरी।
खग-कुल कुल-कुल सा बोल. रहा,
किसलय का अंचल डोल रहा,
लो यह लतिका भी भर लायी-
मधु-मुकुल नवल-रस गागरी।
अधरों में राग
अमन्द पिये.
अलकों में मलयज बन्द किये-
तू अब तक सोयी है आली!
आँखों में भरे विहाग री।।
('लहर' से)
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