Hindi, asked by chitransh1479, 10 months ago


गीता के निम्नलिखित श्लोकों को अर्थ सहित लिखकर सस्वर वाचन का अभ्यास करें ।
अध्याय
श्लोक संख्या
द्वितीय अध्याय 23
तृतीय अध्याय 21
चतुर्थ अध्याय 7.8

अष्टादश अध्याय
66​

Answers

Answered by anitasingh0955
3

Answer:

आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं...

नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक:।

न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत॥

(द्वितीय अध्याय, श्लोक 23)

अर्थ: आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है। यहां श्रीकृष्ण ने आत्मा के अजर-अमर और शाश्वत होने की बात की है।

मानव उसी का अनुसरण करने लग जाते हैं...

यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:।

स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥

(तृतीय अध्याय, श्लोक 21)

अर्थ: श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण यानी जो-जो काम करते हैं, दूसरे मनुष्य (आम इंसान) भी वैसा ही आचरण, वैसा ही काम करते हैं। श्रेष्ठ पुरुष जो प्रमाण या उदाहरण प्रस्तुत करते हैं, समस्त मानव-समुदाय उसी का अनुसरण करने लग जाते हैं।

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिभज़्वति भारत:।

अभ्युत्थानमधमज़्स्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥

(चतुथज़् अध्याय, श्लोक 7)

इस श्लोक का अथज़् है: हे भारत (अर्जुन), जब-जब धर्म ग्लानि यानी उसका लोप होता है और अधर्म में वृद्धि होती है, तब-तब मैं (श्रीकृष्ण) धर्म के अभ्युत्थान के लिए स्वयम् की रचना करता हूं अर्थात अवतार लेता हूं।

युगों-युगों से प्रत्येक युग में जन्म लेता आया हूं...

परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्।

धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे॥

(चतुर्थ अध्याय, श्लोक 8)

अर्थ: सीधे साधे सरल पुरुषों के कल्याण के लिए और दुष्कर्मियों के विनाश के लिए...धर्म की स्थापना के लिए मैं (श्रीकृष्ण) युगों-युगों से प्रत्येक युग में जन्म लेता आया हूं।

सभी धर्मों को त्याग कर...

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।

अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच:॥

(अठारहवां अध्याय, श्लोक 66)

अर्थ: (हे अर्जुन) सभी धर्मों को त्याग कर अर्थात हर आश्रय को त्याग कर केवल मेरी शरण में आओ, मैं (श्रीकृष्ण) तुम्हें सभी पापों से मुक्ति दिला दूंगा, इसलिए शोक मत करो।

Explanation:

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